तेरे लाला ने माटी खाई जसोदा सुन माई।
अद्भुत खेल सखन संग खेलो, छोटो सो माटी को ढेलो, तुरत श्याम ने मुख में मेलो, याने गटक गटक गटकाई॥
दूध दही को कबहुँ न नाटी, क्यों लाला तेने खाई माटी,जसोदा समझावे ले सांटी, याने नेक दया नही आई॥
मुख के माँही आंगुली मेली, निकल पडी माटी की ढेली।भीर भई सखियन की भेली, याने देखे लोग लुगाई॥
मोहन को मुखडो खुलवायो, तीन लोक वामे दरसायो । तब विश्वास यसोदाहिं आयो, यो तो पूरण ब्रह्म कन्हाई॥
ऐसो रस नाहि माखन में, मेवा मिसरी नही दाखन में । जो रस ब्रज रज के चाखन में, याने मुक्ति की मुक्ति कराई॥
या रज को सुर नर मुनि तरसे, बडभागी जन नित उठ परसें । जाकी लगन लगी रहे हरि से, यह तो घासीराम कथ गई॥
1 टिप्पणी
Comments feed for this article
अप्रैल 9, 2016 at 8:56 पूर्वाह्न
mannoneil78896
That’s a possiblilty. I heard somewhere that George himself proposed 95%, but don’t remember seeing a source for it, nor when he’s supposed to have d Click http://s.intmainreturn0.com/hukcoo091645