You are currently browsing the category archive for the ‘गणगौर के पद’ category.
सघन कुंज भवन आज फूलन की मंडली रचि ता मधि लै संग राधा बैठे गिरिधरनलाल।
चूनरी की बांधि पाग अंग बागो चूनरी को उपरेना कंठ हीरा हार मोती माल॥१॥
स्याम चूरी हरित लहँगा पहरि चूनरि झूमक सारी मानो गनगौर बनी ऐन मेन कीरति बाल ।
कृष्णदास पिय प्यारी अपने कर दरपन लै मुख देखत बार बार हँसि हँसि भरि अंक जाल॥२॥
नंद घरुनि वृषभान घरुनि मिलि कहति सबन गनगौर मनाओ।
नये बसन आभूषन पहरो मंगल गीत मनोहर गाओ॥१॥
करि टीकौ नीकौ कुमकुम कौ आंगन मोतिन चौक पुराओ।
चित्र विचित्र वसन पल्लव के तोरन बंदरवार बँधाओ॥२॥
घूमर खेलो नवरस झेलो राधा गिरिधर लाड लडावो।
विविध भांति पकवान मिठाई गूँजा पूआ बहु भोग धराओ॥३॥
जल अचवाय पोंछि मुख वस्तर माला धरि दोऊ पान खवाओ।
कृष्णदास पिय प्यारी को आनन निरखि नैन मन मोद बढावो॥४॥
रंगीली तीज गनगौर आज चलो भामिनी कुंज छाक लै जैये।
विविध भांति नई सोंज अरपि सब अपने जिय की तृपत बुझैये॥१॥
लै कर बीन बजाय गाय पिय प्यारी जेंमत रुचि उपजैये।
कृष्णदास वृषभानु सुता संग घूमर दै दै नंदनंद रिझैये॥२॥
तीज गनगौर त्यौहार को जानि दिन करत भोजन लाल लाडिली पिय साथ।
चतुर चंद्रावलि बैठि गिरिधरन संग देति नई नई सोंज ले ले अपने हाथ॥१॥
छबि बरनी न जात दोऊ रुचि सों खात करत हसि हसि बात उमग भरि भरि बाथ।
उपजी अंतर प्रीति मदनमोहन कुंज जीत पीवत पय सद्य प्रभु कृष्णदासानि नाथ॥२॥
नवल निकुंज महेल मंदिर में जेंवन बैठे कुंवर कन्हाई।
भरि भरि डला सीस धरि अपने व्रजबधू तहाँ छाक लै आई॥१॥
हरखित बदन निरखि दंपति को सुंदरि मंद मंद मुसकाई।
गूँजा पूआ धरि भोग प्रभु को कृष्णदास गनगौर मनाई॥२॥
कहत जसोदा सब सखियन सों आवो बैठो मंगल गावो।
है गनगौर की तीज रंगीली कान्ह कुंवर को लाड लडावो॥१॥
ललिता चन्द्रभगा चन्द्रावली बेगि जाय राधा लै आवो।
स्यामा चतुरा रसिका भामा तुम पिय को सिंगार बनावो॥२॥
कमला चंपा कुमुदा सुमना पहोंपमाल लै उर पहिरावो।
ध्याया दुर्गा हरखा बहूला लै दरपन कर बैनु गहावो॥३॥
कृष्णा यमुना वृंदा नैनां चरन परसि करि नैन लगावो।
तारा रंगा हंसा विमला जमुनाजल झारी पधरावो॥४॥
नवला अबला नीला सीला गूँजा पूवा ले भोग धरावो।
हीरा रत्ना मैना मोहा लै बीना तुम तान सुनावो॥५॥
घूमर खेलो मन रस झेलो नेह मेह बरखा बरखावो।
कृष्णदास प्रभु गिरिधर को सुख निरखि निरखि दोऊ दृगन सिरावो॥६॥
हाल ही की टिप्पणियाँ