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अरी तुम कोन हो री बन में फूलवा बीनन हारी।
रतन जटित हो बन्यो बगीचा फूल रही फुलवारी॥१॥
कृष्णचंद बनवारी आये मुख क्यों न बोलत सुकुमारी।
तुम तो नंद महर के ढोटा हम वृषभान दुलारी॥२॥
या बन में हम सदा बसत हैं हमही करत रखवारी।
बीन बूझे बीनत फूलवा जोबन मद मतवारी॥३॥
तब ललिता एक मतो उपाय सेन बताई प्यारी।
सूरदास प्रभु रसबस कीने विरह वेदना टारी॥४।
राधा प्यारी कह्यो सखिन सों सांझी धरोरी माई।
बिटियां बहुत अहीरन की मिल गई जहां फूलन अथांई॥१॥
यह बात जानी मनमोहन कह्यो सबन समुझाय।
भैया बछरा देखे रहियो मैया छाक धराय॥२॥
असें कहि चले श्यामसुंदरवर पोहोंचे जहां सब आई।
सखी रूप व्हे मिलें लाडिले फूल लिये हरखाई॥३॥
करसों कर राधा संग शोभित सांझी चीती जाय।
खटरस के व्यंजन अरपे तब मन अभिलाख पुजाय॥४॥
कीरति रानी लेत बलैया विधिसों विनय सुनाय।
सूरदास अविचल यह जोरी सुख निरखत न अघाय॥५॥
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