You are currently browsing the category archive for the ‘राग मल्हार’ category.

ब्रज में रथ चढि चलेरी गोपाल।
संग लिये गोकुल के लरिका बोलत वचन रसाल॥१॥

स्रवन सुनत गृह घ्रुह तें दौरी देखन को ब्रजबाल।
लेत फेरि करि हरि की बलैयाँ वारत कंचन माल॥२॥

सामग्री लै आवत सीतल लेत हरख नन्दलाल।
बांट देत और ग्वालन कों फूले गावत द्वाल॥३॥

जय जयकार भयो त्रिभुवन में कुरुम बरखत तिहिं काल।
देखि देखि उमगे ब्रजवासी सबै देत करताल॥४॥

यह बिधि बन सिंहद्वार जब आवत माय तिलक कर भाल।
लै उछंग पधरावत घर में चलत मंदगति चाल ॥५॥

करि नौछावरे अपने सुत की मुक्ताफल भरि थाल।
यह लीला रस रसिक दिवानिसि सुमिरन होत निहाल॥६॥

रथ चढि चलत जसोदा अंगना ।
विविध सिंगार सकल अंग सोभित मोहत कोटि अनंगा ॥१॥

बालक लीला भाव जनावत किलक हँसत नंदनंदन ।
गरें बिराजत हार कुसुमन के चर्चित चोवा चंदन ॥२॥

अपने अपने गृह पधरावत सब मिलि ब्रजजुबतीजन ।
हर्षित अति अरपत सब सर्वसु वारत हैं तन मन धन ॥३॥

सब ब्रज दै सुख आवत घर कों करत आरती ततछन ।
रसिकदास हरि की यह लीला बसौ हमारे ही मन ॥४॥

देखो देखो नैननि को सुख रथ बैठे हरि आज ।
अग्रज अनुजा सहित स्याम घन सबै मनोरथ साज ॥१॥

हाटक कलसा ध्वजा पताका छत्र चंवर सिर ताज ।
तुरंग चाल अति चपल चलत हैं देखि पवन मन लाज ॥२॥

सुद आषाढ दोज शुभ दिन पुष्य नक्षत्र संयोग ।
बनमाला पीतांबर राजत धूप दीप बहु भोग ॥३॥

गारी देत सबै मन भावत कीरति अगम अपार ।
मधोदास चरननि को सेवक जगन्नाथ श्रुतिसार ॥४॥

तुम देखो माई आज नैन भर हरि जू के रथ की सोभा।

प्रात समय मनो उदित भयो रवि निरखि नयन अति लोभा ॥१॥

मनिमय जटित साज सरस सब ध्वजा चमर चित चोबा।
मदनमोहन पिय मध्य बिराजत मनसिज मन के छोभा ॥२॥

चलत तुरंग चंचल भू उपर कहा कहूं यह ओभा ।
आनंद सिंधु मानों मकर क्रीडत मगन मुदित चित चोभा ॥३॥

यह बिध बनी बनी ब्रज बीथन महियां देत सकल आनंद ।
गोविन्द प्रभु पिय सदा बसो जिय वृंदावन के चद ॥४॥

हों तो एक नई बात सुन आई।

महरि जसोदा ढोटा जायो, आंगन बजत बधाई ॥१॥

कहिये कहा कहत नहि आवे रतन भूमि छबि छाई ।

नाचर बिरध तरुण अरु बालक गोरस कीच मचाई ॥२॥

द्वारें भीतर गोप ग्वालन की वरनों कहा बढाई ।

सूरदास प्रभु अंतरयामी, नंदसुवन सुखदाई ॥३॥

वृंदावन क्यों न भये हम मोर।
करत निवास गोवर्धन ऊपर, निरखत नंदकिशोर॥१॥

क्यों न भये बंसी कुल सजनी, अधर पीबत घनघोर।
क्यों न भये गुंजा बनवेली, रहत स्याम जु की ओर॥२॥

क्यों न भये मकराकृत कुंडल, स्याम श्रवन झकझोर।
परमानंद दास को ठाकुर गोपिन के चित्तचोर॥३॥

गाय सब गोवर्धन तें आईं।
बछरा चरावत श्री नंदनंदन, वेणु बजाय बुलाई॥१॥

घेरि न घिरत गोप बालक पें, अति आतुर व्हे धाई।
बाढी प्रीत मदन मोहन सों, दूध की नदी बहाई ॥२॥

निरख स्वरूप ब्रजराज कुंवर को, नयनन निरख निकाई ।
कुंभनदास प्रभु के सन्मुख, ठाडी भईं मानो चित्र लिखाई॥३॥

देखो माई ये बडभागी मोर।
जिनकी पंख को मुकुट बनत है, शिर धरें नंदकिशोर॥१॥

ये बडभागी नंद यशोदा, पुन्य कीये भरझोर।
वृंदावन हम क्यों न भई हैं लागत पग की ओर॥२॥

ब्रह्मदिक सनकादिक नारद, ठाडे हैं कर जोर।
सूरदास संतन को सर्वस्व देखियत माखन चोरे॥३॥

देखो माई हरियारो सावन आयो।
हर्यो टिपारो शीश विराजत काछ हरी मन भायो॥१॥

हरी मुरली हे हरि संग राधे, हरी भूमि सुखदाई।
हरी हरी वन राजत द्रुमवेली नृत्यत कुंवर कन्हाई॥२॥

हरी हरी सारी, सखीजन पहेरें, चोली हरी रंग भीनी।
रसिक प्रीतम मन हरित भयो हे, सर्वस्व नौछावर कीनो॥३॥

बोले माई गोवर्धन पर मुरवा ।
तेसी ये श्यामघन मुरली बजाई, तेसेई उठे झुमधुरवा ॥१॥
बडी बडी बूंदन वरषन लाग्यो, पवन चलत अति झुरवा।
सूरदास प्रभु तुम्हारे मिलन को निश जागत भयो भुरवा ॥२॥

बादर झूम झूम बरसन लागे ।
दामिनि दमकत चोंक चमक श्याम घन की गरज सुन जागे ॥१॥

गोपी जन द्वारे ठाडी नारी नर भींजत मुख देखन कारन अनुरागे ।
छीतस्वामी गिरधरन श्री विट्ठल ओतप्रोत रस पागे ॥२॥

नवीनतम

श्रेणियां

पुरालेख

अन्नकूट के पद आरती आश्रय के पद आसकरण जी इन्द्रमान भंग के पद कलेऊ के पद कुंभनदास जी कृष्णदास जी कृष्णदासनि जी खंडिता के पद गणगौर के पद गदाधर जी गिरिधर जी गोविन्द दास जी घासीराम जी चतुर्भुज दास जी छीतस्वामी जी जगाने के पद जन्माष्टमी डोल के पद तुलसीदास जी दान के पद दीनता के पद द्वारकेश धमार के पद नंददास जी नंद महोत्सव नित्य पाठ नित्य सेवा परमानंददास जी पलना पवित्रा के पद फूलमंडली के पद बसंत के पद भगवान दास जी मंगला आरती मंगला सन्मुख मकर सक्रांति के पद महात्म्य महाप्रभु जी का उत्सव महाप्रभू जी की बधाई माधोदास जी यमुना जी के पद यमुना जी के ४१ पद रथ यात्रा के पद रसिक दास राखी के पद राग आसावरी राग कल्याण राग कान्हरो राग काफी राग केदार राग गोरी राग गौड सारंग राग जैजवंती राग टोडी राग देवगंधार राग धना श्री राग नूर सारंग राग बसंत राग बिलावल राग बिहाग राग भैरव राग मल्हार राग मालकौस राग मालव राग रामकली राग रायसो राग ललित राग विभास राग सारंग राग सोरठ राजभोज आरोगाते समय रामनवमी के पद रामराय जी विवाह के पद विविध विविध भजन शयन सन्मुख के पद श्री गंगाबाई श्रीजी श्रीनाथ जी श्री महाप्रभु जी के पद श्री वल्लभ श्री वल्ल्भ श्री हरिराय जी श्रृंगार के पद श्रृंगार सन्मुख षोडश ग्रंथ सगुनदास जी सांझी के पद सूरदास जी सूरश्याम हरिदास जी हिंडोरा के पद होली के पद होली के रसिया

Enter your email address to subscribe to this blog and receive notifications of new posts by email.

Join 356 other subscribers