॥श्री वल्लभ साखी॥
श्री वल्लभ पद वन्दों सदा, सरस होत सब ज्ञान ।
रसिक रटत आनंद सों, करत सुधा रस पान ॥१॥
और कछु जान्यो नही, बिना श्री वल्लभ एक।
कर गहि के छांडे नही, जिनकी ऐसी टेक ॥२॥
श्री वल्लभ वल्लभ रटत हो, जहा देखो तहा येह।
इनहीं छांड औरही भजे, तो जरि जावो वह देह ॥३॥
देवी देव आराधिके, भूल्यो सब संसार ।
श्री वल्लभ नाम नौका बिना, काहुक उतर्यो पार॥४॥
ऐसे प्रभु क्यों बिसारिये, जाकी कृपा अपार।
पल पल में रटते रहो, श्री वल्लभ नाम उचार ॥५॥
श्री वल्लभ नाम अगाध है, जहाँ तहाँ तु मत बोल।
जब हरिजन ग्राहक मिले, वा आगे तू खोल॥६॥
श्री वल्लभ वर को छांडि के, और देव को धाय ।
ता मुख पनैया कूटिये, जब लग कूटि आय॥७॥
श्री वल्लभ वल्लभ रटत हो, वल्लभ जीवन प्राण ।
वल्लभ कबहू न बिसारिहों, हो मोहि मात पिता की आन॥८॥
मैं इन चरन न छांडि हों, श्री वल्लभ वर ईश ॥
जो लो तन में श्वास है, तो लो चरन धरो मम शीश॥९॥
बहुत दिना भटकत फिर्यो, कछु ना आयो साथ।
श्री वल्लभ सुमर्यो तबे, पर्यो पदारथ हाथ॥१०॥
बहे जात भव सिंधु में, देवी सृष्टी आपार।
तिनके करन उद्धार प्रभु, प्रकटे परम उदार॥११॥
श्री वल्लभ करुणा करी, कलि में ल्यो अवतार ।
महा पतित उद्धार के, कीनों यश विस्तार॥१२॥
श्री वल्लभ वल्लभ कहत हो, वल्लभ चितवन बैन ।
श्री वल्लभ छांड औरही भजे, तो फूट जावो दोऊ नैन ॥१३॥
धूर परो वा वदन में, जाको चित नही ठोर।
श्री वल्लभ वर को बिसरा के, नयनन निरखे और ॥१४॥
शरणागति जब लेत है, करत त्रिविध दुःख दूर।
शोक मोह ते काढि के, देत आनंद भरपूर ॥१५॥
यश ही फेल्यो जगत में, अधम उद्धारण आय ।
तिनकी विनती करत हो, चरन कमल चित लाय ॥१६॥
पतितन में विख्यात हो, महापतित मम नाम ।
अब याचक होये जाछ हो, शरणागति सब याम ॥१७॥
श्री वल्लभ विट्ठलनाथ जु, सुमिरो एक घडी ।
ताके पातक यों जरे, ज्यों अग्नि में लकडी ॥१८॥
धरणी अति व्याकुल भयी, विधि सो करी पुकार।
श्री वल्लभ अवतार ले, तार्यो सब संसार ॥१९॥
श्री वल्लभ राजकुमार बिनु, मिथ्या सब संसार ।
चढि कागद कि नाव नाव पर, काहु को उतार्यो पार॥२०॥
कलियुग ने सब धर्म के, द्वारे रोके आय ।
श्री वल्लभ खिडकी प्रेम की, निकस जाय सो जाय ॥२१॥
भगवद भगवदीय एक हैं, तिन सो राखों नेह ।
भवसागर के तरन की, नीकी नौका येह ॥२२॥
श्री वल्लभ कल्पद्रुम फल्यो, फल लाग्यो विट्ठलेश ।
शाखा सब बालक भये, ताको पार ना पावत शेष ॥२३॥
श्री वल्लभ आवत में सुने, कछु नियरे कछु दूर।
इन पलकन सो मगझार हो, व्रज गलियन की धूर॥२४॥
कृपा सिंधु जल सींच के, राख्यो जीवन मूल ।
स्नेह बिना मरजात है, प्रेम बाग के फूल ॥२५॥
जग में मिलना अनूप है, भगवदियों का संग।
तिनके संग प्रताप तें, होत श्याम सो रंग ॥२६॥
हरि जन आवे वारणे, हँसी हँसी नावे शीश।
उनके मन की वे जाने, मेरे मन जगदीश॥२७॥
हरि बडे हरि जन बडे, बडे हैं हरि के दास।
हरिजन सों हरि पाँवहीं, जो हैं इन के पास॥२८॥
मन नग ताको दीजिये, जो प्रेम पारखी होय।
नातर रहिये मौन व्हे, काहे जीवन खोय ॥२९॥
प्रेम पारखी जो मिले, ताको करि मनुहार ।
तिन सों प्रिय प्रीतम मिले, सब कुछ दीजे वार ॥३०॥
रंचक दोष ना देखिये, वे गुन प्रेम अमोल ।
प्रेम सुहागी जो मिले, तासों अंतर खोल ॥३१॥
साधन करो दृढ आसरो, फूल भजवो फल एक।
पलक पलक के ऊपरे, वारो कल्प अनेक ॥३२॥
श्री वल्लभ जीवन प्राण हैं, नयनन राखो घेर ।
पलकन के परदा करो, जान न देहो फेर॥३३॥
पूरण ब्रह्म प्रकट भये, श्री लक्षमण भट्ट गेह ।
निजजन पर बरखत सदा, श्री व्रजपति पद नेह ॥३४॥
जागत सोवत स्वपन में, भोर द्योष निश सांझ ।
श्री वल्लभ व्रज ईश के, चरण धरो हिय माँझ॥३५॥
हा हा मानो कहत हो, करि गिरिधर सो नेह।
बहुरि ना ऐसी पावही, उत्तम मानुष देह॥३६॥
चतुराई चूल्हे परो, ज्ञानी को यम खाऊ।
जा तन सो सेवा नही, सो जडामूल सो जाऊ॥३७॥
देखी देह सुरंग गह, मति भूले मन माहि।
श्री वल्लभ बिनु और कोऊ, तेरो संगी नाही॥३८॥
तेरी साथिन देह नही, याके रंग मत भूल।
अंत समय पछतायेगो, तुरत मिलेगी धूल ॥३९॥
देही देखी सुरंग यह, मती लडावे लाड।
गणिका की सी मित्रता, अंत होयेगी भाड॥४०॥
देही देख सुरंग यह मत भूले तु गवार।
हाड मांस की कोठरी, भीतर भरी भंगार॥४१॥
महामान मद चातुरी, गरवाई और नेह।
ये पाँचों जब जायेंगे, तब मानो सुख देह॥४२॥
भवसागर के तारण की, बडी अटपटी चाल।
श्री विट्ठलेश प्रताप बल, उतरत है तत्काल ॥४३॥
मीन रहत जल आसरे, निकसत ही मर जाय ।
त्यों श्री विट्ठलनाथ के, चरण कमल चित लाय॥४४॥
श्री वल्लभ को कल्पद्रुम, छाय रह्यो जग मांहि।
पुरुषोत्तम फल देत हैं, नेक जो बैठों छांह ॥४५॥
चतुराई सोई भली, जो कृष्ण कथा रस लीन ।
परधन परमन हरण को, कहिये वाहि प्रवीण॥४६॥
चतुराई चूल्हे परो, ज्ञानी को यम खाऊ।
दया भाव हरि भक्ति बिना, ज्ञान परो जरि जाव ॥४७॥
श्री वल्लभ सुमर्यो नही, बोलियो अटपटे बोल।
ताकि जाननी बोज़न मरी, वृथा वजावे ढोल॥४८॥
घर आवे वैष्णव जबहीं, दीजे चार रतन।
आसन, जल, वाणी मधुर, यथाशक्ति सो अन्न॥४९॥
श्री वल्लभ धीरज धरे ते, कुंजर मन भर खाय ।
एक टूक के कारणे, स्वान बहुत धर जाय॥५०॥
रसिक जन बहु ना मिले, सिहा यूथ नहि होय।
विरहन बेल जहाँ तहाँ नही, घट घट प्रेम न होय॥५१॥
हरिजन की हाँसी करे, ताहि सकल विधि हानि।
तापर कोपत व्रजपति, दुःख को हानि परमान॥५२॥
छिन उतरे छिन ही चढे, छिन छिन आतुर होय।
निश वासर भीज्यो रहे, प्रेमी कहिये सोय॥५३॥
उर बिच गोकुल नयन जल, मुख श्री वल्लभ नाम।
अस ता दृशी के संग तें, होत सकल सिध काम॥५४॥
बिनु देखे आतुर रहे, प्रेम बाग को फूल।
चित्त ना मन ताहि बिनु, प्रेम जो सबको मूल॥५५॥
कृष्ण प्रेम मातो रहे, घरे ना काहू शंक ।
तिन गंध कोपिन पे, जिन इन्द्र को रंक ॥५६॥
श्री वल्लभ वल्लभ जे कहे, रहत सदा मन तोष।
ताके पातक यो जरे, ज्यों सूरज ते ओस॥५७॥
श्री वल्लभ श्री वल्लभ भजे, सदा सोहिलो होय।
दुःख भाजे, दरिद्र टरे, बेरी न गाये कोय॥५८॥
श्री वल्लभ वर को छांडि के, भजे जो भैरव भूत।
अंत फजीती होयगी, ज्यों गणिका को पूत॥५९॥
वैष्णव की झोपडी भली, और देव को गाम।
आग लगे वा मेंड में, जहाँ न वल्लभ नाम॥६०॥
श्री वल्लभ पर रुचि नही, ना वैष्णव पर स्नेह।
ताको जनम वृथा भयो, ज्यों फागुन को मेह॥६१॥
मोमे तिल भर गुण नहे, तुम हो गुणन के जहाज।
रिज बुज चित्त राखियो, बान्ह गहे की लाज॥६२॥
तीन देव के भजन से, सिद्ध होत नहि काम ।
त्रिमाया को प्रलय कर, अह्रि मिलवे हरिनाम ॥६३॥
सुमरत जाय कलेश मिट, श्री वल्लभ निजनाम।
लीला लहर समुद्र में, भीजो आठों याम॥६४॥
तिनके पद युग कमल की, चरण रेणु सुखदाय ।
होय में धारण किये ते, सब चिन्ता मिट जाय ॥६५॥
श्री वल्लभ कुल बालक सबे, सबही एक स्वरूप।
छोटो बडो न जानियो, सबहिं अग्नि स्वरूप॥६६॥
मन नग ताको दीजिये, जो प्रेम पारखी होय।
नातर रहिये मौन गहि, वृथा न जीवन खोय॥६७॥
मन पंछी तब लगि उडे, विषय वासना माहि।
प्रेम बाज की झपट में, जब लग आयो नाहि॥६८॥
श्री वल्लभ मन को भामतो, मो मन रह्यो समाय।
ज्यों मेहंदी के पाट में, लाली लखी न जाय ॥६९॥
श्री वल्लभ विट्ठल रूप को, का करि सके विचार।
गूढ भाव यह स्वामिनी, प्रगट कृष्ण अवतार॥७०॥
श्री वृंदावन के दरस ते, भये जीव अनुकूल।
भवसागर अथाह जल, उतरन को यह तूल ॥७१॥
श्री वृंदावन बानिक बन्यो, कुंज कुंज अलि केलि।
आरही श्याम तमाल सों, मानो कंचन वेलि॥७२॥
श्री वृंदावन के वृक्ष को, मरम न जाने कोय।
एक पट को सुमिर के, आप चतुर्भुज होय॥७३॥
कोटि पाप छिन में तरे, लेहि वृंदावन नाम।
तीन लोक पर गाजिये, सुखनिधि गोकुल नाम॥७४॥
नन्द नंदन शिर राजही, बरसानो वृषभान।
दौउ मिल क्रीडा करत हु, इत गोपी उत कान्ह ॥७५॥
श्री यमुना जी सो नेह करि, यह नेमि तू लेह।
श्री वल्लभ के दास बिनु, ओरन सो तजि स्नेह॥७६॥
मन पंछी तन पंख कर, उड जाओ वह देश।
श्री गोकुल गाम सुहावनो, जहाँ गोकुल चन्द्र नरेश॥७७॥
मणि खंचित दोऊ कूल हैं, सीधी सुभग नग हीर।
श्री यमुना जी हरि भामति, धरे सुभग वपु नीर ॥७८॥
उभय फूल निज खंभ है, तरंग जु सिद्धि मान ।
श्री यमुना जगत वैकुंठ की, प्रगत नसाइन जान ॥७९॥
रतन खचित कंचन महा, श्री वृंदावन की भूमि।
कल्पवृक्ष से द्रुम रहे, फल फूलन करि झूमि ॥८०॥
धन्य धन्य श्री गिरिराज जु, हरिदासन में राय।
सानिध्य सेवा करत है, बल मोहन जिय भाय ॥८१॥
कोटि तरत अध रटत तें, मिटत सकल जंजाल।
प्रगट भये कलिकाल में, देव दमन नंदलाल॥८२॥
प्रौढ भाव गिरिवरधरन, श्री नवनीत दयाल।
श्री मथुरानाथ निकुंजपति, श्री विट्ठलेश सुख साल ॥८३॥
श्री द्वारकेश तदभाव में, गोकुलेश ब्रज भूप।
अद्भुत गोकुल चन्द्रमा, मन्मथ मोहन रूप॥८४॥
माट लिये माखन लिये, नूपुर बाजे पांव।
रिरुत्यात नटवरलाल जु, मुदित यशोदा माय ॥८५॥
झूलत पलना मोद में, श्री बालकॄष्ण रसरास।
तोडे शकट, रस बस किये, ब्रज युवतिन करि हास॥८६॥
श्री गिरिधर गोविन्द जू, बालकृष्ण गोकुलेश ।
रघुपति यदुपति घनश्याम जु, प्रगटे ब्रह्म विशेष ॥८७॥
परम सुखद अभिराम है, श्री गोकुल सुख धाम।
घुटुरुन खेलत फिरत है, श्री कमलनयन घनश्याम ॥८८॥
गोविन्द घाट सुहावनो, छोकर परम अनूप।
बैठक वल्लभ देव की, निज जन को फल रूप॥८९॥
बेलि लता बहु भांति की, द्रुमन रही लपटाय ।
मानो नायक नायिका, मिली मन ताजि आय॥९०॥
केकि शुक पिक द्रुम चढे, गुंजत है बहु भाय ।
रास केलि के आगमन, प्रमुदित मंगल गाय ॥९१॥
गोपि औपी जगत में, चालिके उलटी रीत ।
तिन के पद वंदन किये, बढत कृष्ण सौं प्रीत ॥९२॥
ठकुरानी घाट सुहावनो, छोकर परम अनूप।
दामोदर दास सेवा करे, जो ललिता रस रूप॥९३॥
कृष्णदास नंददास जु, सूर सु परमानंद।
कुंभन चतुर्भुजदास जु, छितस्वामी गोविंद ॥९४॥
श्री राधामाधो परम धन, शुक अरु व्यास लियो घूंट।
यह धन खर्चे घटत नही, चोर लेत ना लूट ॥९५॥
श्री वल्लभ रतन अमोल है, छुप कर दीजे ताल ।
तब अपना मन खोलिये, कूंची शब्द रसाल ॥९६॥
सबको प्रिय सबको सुखद, हरिआदिक सब धाम ।
व्रज लीला सव स्फुरत है, श्री वल्लभ सुमरत नाम ॥९७॥
चार वेद के पढे तें, जीत्यो जाय न कोय।
पुष्टिमार्ग सिद्धांत ते, विजय जगत में होय ॥९८॥
वृंदावन की माधुरी, नित नित नूतन रंग।
कृष्णदास क्यों पाइये, बिनु रसिकन के संग॥९९॥
जो गावे सीखे सुने, मन वच क्रम समेत।
’रसिकराय’ सुमिरो सदा, मन वांछित फल देत ॥१००॥
॥श्री हरिराय महाप्रभु रचित श्री वल्लभ साखी संपूर्ण ॥
सामग्री श्री वल्लभ शरणम से साभार । श्री वल्लभ शरणम पर यह अंग्रेजी में उपलब्ध है। अनुवाद/भाषा में त्रुटियां इंगित करने का कष्ट करें ताकि संशोधन किया जा सके।
सादर जय श्री कृष्णा ।
32 टिप्पणिया
Comments feed for this article
अगस्त 7, 2008 at 7:45 पूर्वाह्न
devarshi shah
jay shree krusna
prachin dhol ane pad ni web side ni mahiti jo tamari pase hoy to
tame mane Email kari ne janavso
फ़रवरी 13, 2013 at 4:24 अपराह्न
saransh mehrotra
Jai shri krishna
Tame je site ni mahiti chahiye te hoe che
http://www.vallabhkankroli.org
अगस्त 21, 2010 at 9:35 पूर्वाह्न
mukul bhatia
JAI SHRI KRISHN
HUM SAB PAR HAMARE SHRINATHJI KI KRAPA BANI REHA SHRI KRISHNA SHARANANAM MAM RATTE REHO
JAI SHRI KRISHN
अगस्त 28, 2010 at 11:46 पूर्वाह्न
Himanshu Vakharia
Jai Shri Krishna Vaishnav,
Shri Vallabhsakhi by Shri Hariraji Mahaprabhuji ki wo hai jiski 100 kadia hame purn Pushtimarg shikhati hai….
Shri Hariraji Mahaprabhuji ki jay……
जून 27, 2011 at 10:37 पूर्वाह्न
Jogani Jyotsna
Jay Shri Krishna To All Vaishanav,
Tamara Pratibhavo Vanchata Khubaj Anand Thay Chhe..
Shri Vallabhmahprabhujia Khubaj Sharm Karine Apna Mate Avo Durlabh Marg Sthapit Kario Chhe.. Keva Krupalu Chhe.. Mara Vhala !
”Tamari Murti Vina Mara Nathre…Biju Mane apashoama (2)…Hu to aj mangu chhu tam pasre… Biju Mane apshoma (2)….
Bolo Nandladilaki Jay…
नवम्बर 30, 2011 at 8:18 अपराह्न
Ms Juneja
पुष्टिप्रसाद नाम के सामयिक में श्री वल्लभ साखि का सुंदर रीत से विवेचन किया गया है आज के पहेले मैने इतना सुंदर विवेचन कहीं नहीं देखा। plz आप भी चेक कीजिये। जय श्री कृष्ण।
http://pushtiprasad.com
मार्च 2, 2012 at 8:07 अपराह्न
Vrajnish Shah
Jayshreekrashna.Jaysrivallabh.Jaysriyamunaji.
All vaishnavs are requested to see and read the “Pushti Prasad” on link http://www.pushtiprasad.com This only one an one FREE vaishnav Prakasan seance from April 04.Any one like to see and read the printed copy of ‘Pushti Prasad’ Pl,.let us know the mailing Adds,. so we arrange to mail it to your home.My adds,.is Vrajnish Shah.21710 Gorman Dr BOYDS MD 20841 USA Contect # 301-540-0006.E-mail ‘vrajnishshah@hotmail.com’ or ‘pushtiprasadinc@hotmail.com’
Hopping all well.
Srijibava Bless You All.
Sweet Regards
&
JSK….
Vrajnish Shah,
मार्च 12, 2012 at 2:49 अपराह्न
Nirav & Gopi Talati
Prabhu Sharan and Shmaran ka online avasr apne guru se prapt ho raha hai. yeh hamara saubhagya hai.
jay gokul ke chand ki.
मार्च 12, 2012 at 3:42 अपराह्न
Vrajnish Shah
Jay Shree Kraushana.
To All viewers and readers.Very nice ti see the “Sri Vallabh Sakhi” on screen.Its the wounder full meassage to all Pushti margiya vaishnav fromaacharia Charan Sri Hariraimahaprabhuji through ‘Sri Vallabh Sakhi’.
The same thing written by Sri Purvi Malkan Modi and publice in the Free vaishnav masik the “Pushti Prasad”. I like request by this comments,Pl,. see and read the ‘Pushti Prasad’ on http://www.pushtiprasad.com all 94 anks on this web from April 2004 to December 2011.Your any itrested vaishnav like see and read the ‘Pushti Prasad’ Pl,. let me know the Adds,.we arreange to mail you at free of cost.
Hopping all well.
Regards & JSK…
Vrajnish Shah
21710 Gorman Dr
Boyds Md 20841 USA
301-540-0006.
अप्रैल 9, 2012 at 5:45 पूर्वाह्न
manoj mali
shreemad vallabh sarvasvam…….!!!!!
अप्रैल 9, 2012 at 10:31 अपराह्न
Vrajnish Shah
Res,. Sri Manojbhai.
You may read and see the greate greate discution on Sr Vallabh Shakhi by Smt Purvi malkan Modi from PA.Its in the ‘Pushti Prasad’.Seance last in 10 anks you read it.If you like to say more Pl,. lte us know , I realy count your coments and publice in ‘Pushti Prasad’Send your coments on “pushtiprasadin@hotmail.com” or “vrajnishshah@hotmail.com”.
Regards
Vrajnish.
अप्रैल 14, 2012 at 4:57 अपराह्न
bini
pushtimarg ma paheli vaar koie aatli saras rite vallabh saakhio samjaavi chhe aa pushtiprasad ni link online chhe tethi vaanvaa ni bahu maja aave chhe pan 2012 na ank haji muaaya nathi. Purvi malkan Modi from PA na lakhan pakdi ne rakhe chhe pushtiprasad valane vinati ke tame lakhya karsho jethi amne navu navu vaanchvanu maltu jay jai shree krishna.
अप्रैल 14, 2012 at 6:52 अपराह्न
Vrajnish Shah
Sri Biniji.
JSK…
Ank of pushti prasad of JAN and FEB 12 was already publice.Now March/April on way to mail to all.You need the printed copy of Pushti Prasad Pl,. let me know your Adds,.We mail you.
jai Shree Krishna.
Vrajnish
अप्रैल 14, 2012 at 6:51 अपराह्न
purvi
jai shree krishna
जून 7, 2012 at 3:28 पूर्वाह्न
મીનું
સોનુ પુષ્ટિપ્રસાદની વલ્લભ સાખી ખરેખર સરસ છે હોં. સરપ્રાઈઝ છે આ તો આપણાં વૈષ્ણવો માટે. મન ખુશખુશાલ થઈ ગયું.
जुलाई 18, 2012 at 5:04 अपराह्न
Bitthal Patidar
सभी वैष्णवों को सादर
जय श्री कृष्ण,
मेरा निवेदन ये हे कि इस वेबसाईट पर भजन,कीर्तन पद,वार्ता विवरण डाउनलोड करने की सुविधा उपलब्ध करवाई जाऐ जिससे सभी वैष्णव इसका लाभ ऊठा पाऐं|
धन्यवाद,
जय श्री कृष्ण|
अप्रैल 12, 2013 at 1:59 अपराह्न
Rajnish sharma
Sundar
नवम्बर 25, 2013 at 7:58 पूर्वाह्न
NIKUNJ KANSARA
NEED MP3 OF SHREE VALLABH SAKHI
मार्च 25, 2017 at 12:19 अपराह्न
ek vaishnav
mera contact kro jii whatsapp me 58:10 ka mp3 hai 10.86mb size…whatsapp 7990346118.
मार्च 25, 2017 at 12:59 अपराह्न
vrajnish shah
PP_March-April_2017.pdf
** ફાગણ મહિને ફગ ફગતિ હોળી ** ( માર્ચ )
II શ્રીમદ્ શ્રી વલ્લભાચાર્યજીનો પ્રાગટ્યઉસ્તવ II ( એપ્રિલ )
જણાવેલ લીંક ઉપર II પુષ્ટિ પ્રસાદ II માર્ચ – એપ્રિલ ૨૦૧૭ ના અંકમાં ,
જોવા અને વાંચવાનો વિચારો. અને બીજા મિત્ર વૈષ્ણવને લીંક FW કરવા વિનંતી.
અંક માર્ચના બીજા વીકમાં મૈલ થશે.
II પુષ્ટિ પ્રસાદ II ની અવિરતપણે ચાલતી પ્રગતિને ડોનેશન ના સહકારથી પ્રગતિમય જરૂર બનાવો.
આપેલ ડોનેશન સેવા IRS 501 ( C ) ૩ હેઠળ TAX EXEMPT છે.
આપ શ્રી નું mailing એડ્રેસ મળતા નિયમિતપણે II પુષ્ટિ પ્રસાદ II મૈલ કરાશે.
વ્રજનિશ શાહ
21710 Gorman Dr
Boyds MD 20841
USA
( C ) 240-205-5690
ઈમૈલ :- ‘ pushtipasadinc@hotmail.com ‘
________________________________
फ़रवरी 13, 2014 at 6:08 अपराह्न
pareejat
http://www.pushtidarshan.com/downloads/kirtans/Vallabh%20Sakhi/
फ़रवरी 13, 2014 at 6:08 अपराह्न
pareejat
vallabh saakhi mp3
फ़रवरी 13, 2014 at 6:09 अपराह्न
pareejat
जून 10, 2015 at 7:09 अपराह्न
श्री वल्लभ साखी » Shree Nathdwara
[…] Reference – https://pushtimarg.wordpress.com/shree-vallabh-saakhi/ […]
जुलाई 17, 2015 at 5:47 पूर्वाह्न
ladani renish b
Jay shree krishna
दिसम्बर 11, 2015 at 9:52 पूर्वाह्न
prashant ranpara
Jai shree krishna,
Shri vallabha dish ki jai,
Vallabh sakhi is the best kirtan by harriraiji, mahaprabhuji. It tells that krishna is a every where.it tells that krishna is holy and divine.this kirtan tells u how to do bhakti of krishna.its a wonderful message for every phustimargiya vaishnav.
मार्च 8, 2017 at 3:52 अपराह्न
govind kirar
Super
सितम्बर 12, 2018 at 7:27 पूर्वाह्न
Shah lekah
Please pdf file send
नवम्बर 27, 2019 at 9:14 पूर्वाह्न
JIGAR PATEL
I want Shree Vallabh Sakhi e-book in gujarati language.
सितम्बर 24, 2022 at 8:34 अपराह्न
Dr Chandrakant jadav
To all beloved vallabhiyjan ,
Kindly download one app that’s complete and gives audio video information including:Kirtan,Vartaji,Vachanamrut,Satasang,Dhol,vallabhsakhi,vallabhakhyan many more.name is
BHAKTI RADIO.will it satisfy all in all aspect.
Jai shree vallabh.
जून 24, 2020 at 8:10 पूर्वाह्न
Prakash k Shah
Please give meaning in details. In gujarati
जुलाई 8, 2021 at 5:57 अपराह्न
Paresh
Good work