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सुभग सेज सोभित कौसल्या रुचिर राम सिसु गोद लिये।
बाललीला गावत हुलरावत पुलकित प्रेम पीयुष पिये॥१॥
कबहू पौढि पय पान करावत कबहूं राखत लाय हिये।
बार बार बिधु बदन बिलोकत लोचन चारु चकोर पिये॥२॥
सिव विरंच मुनि सब सिहात हैं चितवत अंबुज ओट दिये।
तुलसीदास यह सुख रघुपति को पायो तो काहू न बिये॥३॥
कौसल्या रघुनाथ कों लिये गोद खिलावे।
सुंदर बदन निहारकें हँसि कंठ लगावे॥१॥
पीत झगुलिया तन लसे पग नूपुर बाजे।
चलन सिखावे राम कों कोटिक छबि लाजे॥२॥
सीस सुभग कुलही बनी माथे बिंदु बिराजे।
नील कंठ नख केहरी कर कंकन बाजे॥३॥
बाल लीला रघुनाथ की यह सुने और गावे।
तुलसीदास कों यह कृपा नित्य दरसन पावे॥४॥
नौमी चैत की उजियारी।
दसरथ के गृह जनम लियौ है मुदित अयोध्या नारी॥१॥
राम लच्छमन भरत सत्रुहन भूतल प्रगटे चारी।
ललित विलास कमल दल लोचन मोचन दुःख सुख कारी॥२॥
मन्मथ मथन अमित छबि जलरुह नील बसन तन सारी।
पीत बसन दामिनी द्युति बिलसत दसन लसत सित भारी॥३॥
कठुला कंठ रत्न मनि बघना धनु भृकुटी गति न्यारी।
घुटुरुन चलत हरत मन सबको ‘तुलसीदास’ बलिहारी॥४॥
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