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नमो देवेन्द्र दर्पहर श्री मुरारी।
विदित अद्भुत चरित्र गिरिराज उद्धरण गो गोप गोपीजन तापहारी॥१॥
मनो नवल बाल विनोद अखिल गोधन मोद वाम भुजबल वारि वृष्टि हारि।
युवति मुख पद्म मकरंद लंपट मधुप कमल लोचन कंज मालाधारी॥२॥
नमो सकल सौभाग्य निधि राधिका प्राणपति घोषपति मुरलिका रव विहारी।
कृष्णदासनि नाथ नंदनंदन कुंवर मदन मोहन दुहित नाशकारी॥३॥
लीला लाल गोवर्धनधर की।
गावत सुनत अधिक रुचि उपजत रसिक कुंवर श्री राधावर की॥१॥
सात द्योस गिरिवर कर धार्यो मेटी तृषा पुरंदरदर की।
वृजजन मुदित प्रताप चरण तें खेलत हँसत निशंक निडर की॥२॥
गावत शुक शारद मुनि नारद रटत उमापति बल बल कर की।
कृष्णदास द्वारे दुलरावत मांगत जूठन नंदजू के घर की॥३॥
जय जय लाल गोवर्धनधारी इंद्रमान भंग कीनो।
वाम भुजा राख्यो गिरिनायक भक्तन कों सुख दीनों॥१॥
सात द्योस मघवा पच हार्यो गोसुर श्रृंगार न भीनो।
कृष्णदास गिरिधर पिय आगे पाय पर्यो बलहीनो ॥२॥
पद्म धर्यो जन ताप निवारण।
चक्र सुदर्शन धर्यो कमल कर भक्तन की रक्षा के कारण॥१॥
शंख धर्यो रिपु उदर विदारन, गदा धरि दुष्टन संहारन।
चारों भुजा चार आयुध धर नारायण भुव भार उतारन॥२॥
दीनानाथ दयाल जगत गुरू आरती हरन भक्त चिंतामन।
परमानंद दास को ठाकुर यह ओसर ओसर छांडो जिन॥३॥
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