You are currently browsing the category archive for the ‘धमार के पद’ category.

औरन सों खेले धमार श्याम मोंसों मुख हू न बोले।
नंदमहर को लाडिलो मोसो ऐंठ्यो ही डोले॥१॥

राधा जू पनिया निकसी वाको घूंघट खोले।
’सूरदास’ प्रभु सांवरो हियरा बिच डोले॥२॥

खेलत फाग फिरत रस फूले।
स्यामा स्याम प्रेम बस नाचत गावत सुरंग हिंडोरे झूले॥१॥

वृंदावन की जीवन दोऊ नटनागर बंसी बट कूले।
व्यास स्वामिनी की छबि निरखत नैन कुरंग फिरत रसमूले॥२॥

नवरंगी लाल बिहारी हो तेरे द्वै बाप द्वै महतारी।
नवरंगीले नवल बिहारी हम दैंहि कहा कहि गारी॥१॥

द्वै बाप सबै जग जाने। सो तो वेद पुरान बखाने॥
वसुदेव देवकी जाये। सो तो नंद महर घर आये॥२॥

हम बरसाने की नारी। तुम्हे दैं हैं हँसि-हँसि गारी।
तेरी भूआ कुंती रानी। सो तो सूरज देख लुभानी॥३॥

तेरी बहन सुभद्रा क्वारी। सो तो अर्जुन संग सिधारी॥
तेरी द्रुपदसुता सी भाभी। सो तो पांच पुरुष मिलि लाभी॥४॥

हम जाने जू हम जानै। तुम ऊखल हाथ बंधाने॥
हम जानी बात पहचानी। तुम कब ते भये दधि दानी॥५॥

तेरी माया ने सब जग ढूंढ्यो। कोई छोड्यो न बारो बूढ्यो॥
’जनकृष्ण’ गारी गावे। तब हाथ थार कों लावे॥६॥

गोकुल गाम सुहावनो सब मिलि खेलें फाग। मोहन मुरली बजावैं गावें गोरी राग ॥१॥
नर नारी एकत्र व्है आये नंद दरबार। साजे झालर किन्नरी आवज डफ कठतार ॥२॥
चोवा चन्दन अरगजा और कस्तूरी मिलाय। बाल गोविन्द को छिरकत सोभा बरनी न जाय॥३॥
बूका बंदन कुमकुमा ग्वालन लिये अनेक। युवती यूथ पर डारही अपने-अपने टेक॥४॥
सुर कौतुक जो थकित भये थकि रहे सूरज चंद। ’कृष्णदास’ प्रभु विहरत गिरिधर आनन्द कंद॥५॥

राग कल्याण

श्री गोवर्धनराय लाला। अहो प्यारे लाल तिहारे चंचल नयन विशाला॥

तिहारे उर सोहे वनमाला। याते मोही सकल ब्रजबाला॥ ध्रु.॥

खेलत खेलत तहां गये जहां पनिहारिन की बाट। गागर ढोरे सीस ते कोऊ भरन न पावत घाट ॥१॥

नंदराय के लाडिले बलि एसो खेल निवार। मन में आनन्द भरि रह्यो मुख जोवत सकल ब्रजनार॥२॥

अरगजा कुमकुम घोरि के प्यारी लीनो कर लपटाय। अचका अचका आय के भाजी गिरिधर गाल लगाय॥३॥

यह विधि होरी खेल ही ब्रजबासिन संग लाय। गोवर्धनधर रूप पै ’जन गोविन्द’ बलि-बलि जाय॥४॥

लाल गोपाल गुलाल हमारी आँखिन में जिन डारो जू।
बदन चन्द्रमा नैन चकोरी इन अन्तर जिन पारो जू ॥१॥

गावो राग बसन्त परस्पर अटपटे खेल निवारो जू।
कुमकुम रंग सों भरी पिचकारी तकि नैनन जिन मारो जू॥२॥

बंक विलोचन दुखमोचन लोचन भरि दृष्टि निहारो जू।
नागरी नायक सब सुख गायक कृष्णदास को तारो जू॥३॥

व्रज में हरि होरी मचाई ।

इततें आई सुघर राधिका उततें कुंवर कन्हाई ।
खेलत फाग परसपर हिलमिल शोभा बरनी न जाई ॥१॥ नंद घर बजत बधाई….ब्रज में हरि होरी मचाई ।

बाजत ताल मृदंग बांसुरी वीणा ढफ शहनाई ।
उडत अबीर गुलाल कुंकुमा रह्यो सकल ब्रज छाई ॥२॥ मानो मघवा झर लाई…..ब्रज में हरि होरी मचाई ।

लेले रंग कनक पिचकाई सनमुख सबे चलाई ।
छिरकत रंग अंग सब भीजे झुक झुक चाचर गाई ॥३॥ परस्पर लोग लुगाई…ब्रज में हरि होरी मचाई ।

राधा ने सेन दई सखियन को झुंड झुंड घिर आई ।
लपट झपट गई श्यामसुंदर सों बरबस पकर ले आई ॥४॥ लालजु को नाच नचाई…ब्रज में हरि होरी मचाई ।

छीन लई हैं मुरली पीतांबर सिरतें चुनर उढाई ।
बेंदी भाल नयन बिच काजर नकबेसर पहराई ॥५॥ मानो नई नार बनाई …..ब्रज में हरि होरी मचाई ।

मुस्कत है मुख मोड मोड कर कहां गई चतुराई ।
कहां गये तेरे तात नंद जी कहां जसोदा माई ॥६॥ तुम्ह अब ले ना छुडाई….ब्रज में हरि होरी मचाई ।

फगुवा दिये बिन जान न पावो कोटिक करो उपाई ।
लेहूं कढ कसर सब दिन की तुम चित चोर सबाई ॥७॥ बहुत दधि माखन खाई….ब्रज में हरि होरी मचाई ।

रास विलास करत वृंदावन जहां तहां यदुराई ।
राधा श्याम की जुगल जोरि पर सूरदास बलि जाई ॥८॥ प्रीत उर रहि न समाई….ब्रज में हरि होरी मचाई ।

खिलावन आवेंगी ब्रजनारी ।
जागो लाल चिरैया बोली कहि जसुमति महतारी ॥१॥

ओट्यो दूध पान करि मिहन वेगि करो स्नान गुपाल ।
करि सिंगार नवल बानिक बन फेंटन भरो गुलाल ॥२॥

बलदाऊ ले संग सखा सब खेलो अपने द्वार ।
कुमकुम चोवा चंदन छिरको घसि मृगमद घनसार ॥३॥

ले कनहेरि सुनो मनमोहन गावत आवे गारी ।
व्रजपति तबहिं चोंकि उठि बैठे कित मेरी पिचकारी ॥४॥

नवीनतम

श्रेणियां

पुरालेख

अन्नकूट के पद आरती आश्रय के पद आसकरण जी इन्द्रमान भंग के पद कलेऊ के पद कुंभनदास जी कृष्णदास जी कृष्णदासनि जी खंडिता के पद गणगौर के पद गदाधर जी गिरिधर जी गोविन्द दास जी घासीराम जी चतुर्भुज दास जी छीतस्वामी जी जगाने के पद जन्माष्टमी डोल के पद तुलसीदास जी दान के पद दीनता के पद द्वारकेश धमार के पद नंददास जी नंद महोत्सव नित्य पाठ नित्य सेवा परमानंददास जी पलना पवित्रा के पद फूलमंडली के पद बसंत के पद भगवान दास जी मंगला आरती मंगला सन्मुख मकर सक्रांति के पद महात्म्य महाप्रभु जी का उत्सव महाप्रभू जी की बधाई माधोदास जी यमुना जी के पद यमुना जी के ४१ पद रथ यात्रा के पद रसिक दास राखी के पद राग आसावरी राग कल्याण राग कान्हरो राग काफी राग केदार राग गोरी राग गौड सारंग राग जैजवंती राग टोडी राग देवगंधार राग धना श्री राग नूर सारंग राग बसंत राग बिलावल राग बिहाग राग भैरव राग मल्हार राग मालकौस राग मालव राग रामकली राग रायसो राग ललित राग विभास राग सारंग राग सोरठ राजभोज आरोगाते समय रामनवमी के पद रामराय जी विवाह के पद विविध विविध भजन शयन सन्मुख के पद श्री गंगाबाई श्रीजी श्रीनाथ जी श्री महाप्रभु जी के पद श्री वल्लभ श्री वल्ल्भ श्री हरिराय जी श्रृंगार के पद श्रृंगार सन्मुख षोडश ग्रंथ सगुनदास जी सांझी के पद सूरदास जी सूरश्याम हरिदास जी हिंडोरा के पद होली के पद होली के रसिया

Enter your email address to subscribe to this blog and receive notifications of new posts by email.

Join 356 other subscribers