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श्री वल्लभ लाल पालने झूलें मात एलम्मा झुलावे हों।
रतन जटित कंचन पलना पर झूमक मोती सुहावे हो॥१॥
झालर गज मोतिन की राजत दच्छिन चीर उढावे हो।
तोरन घुंघरु घमक रहे हैं झुंझना झमकि मिलावे हो॥२॥
चुचकारत चुटकी दै नचावत चुंबन दै हुलरावे हो।
किलकि किलकि हँसत मुख प्रमुदित बाललीला जाहि भावे हो॥३॥
कबहुँ उरज पय पान करावत फिर पलना पोढावे हो।
पीठ उठाय मैया सन्मुख व्है आपुन रीझि रिझावे हो॥४॥
महाभाग्य हैं तात मात दोऊ आपुन यों बिसरावै हो।
वल्लभदास आस सब पूजी श्री वल्लभ दरस दिखावे हो॥५॥
मलार मठा खींच को लोंदा।
जेवत नंद अरु जसुमति प्यारो जिमावत निरखत कोदा॥
माखन वरा छाछ के लीजे खीचरी मिलाय संग भोजन कीजे॥
सखन सहित मिल जावो वन को पाछे खेल गेंद की कीजे॥
सूरदास अचवन बीरी ले पाछे खेलन को चित दीजे॥
जुरि चली हें बधावन नंद महर घर सुंदर ब्रज की बाला।
कंचन थार हार चंचल छबि कही न परत तिहिं काला॥१॥
डरडहे मुख कुमकुम रंग रंजित , राजत रस के एना।
कंचन पर खेलत मानो खंजन अंजन युत बन नैना॥२॥
दमकत कंठ पदक मणि कुंडल, नवल प्रेम रंग बोरी।
आतुर गति मानो चंद उदय भयो, धावत तृषित चकोरी॥३॥
खसि खसि परत सुमन सीसन ते, उपमा कहां बखानो।
चरन चलन पर रिझि चिकुर वर बरखत फूलन मानो॥४॥
गावत गीत पुनीत करत जग, जसुमति मंदिर आई।
बदन विलोकि बलैया ले लें, देत असीस सुहाई॥५॥
मंगल कलश निकट दीपावली, ठांय ठांय देखि मन भूल्यो।
मानो आगम नंद सुवन को, सुवन फूल ब्रज फूल्यो॥६॥
ता पाछे गन गोप ओप सों, आये अतिसे सोहें।
परमानंद कंद रस भीने, निकर पुरंदर कोहे॥६॥
आनंद घर ज्यों गाजत राजत, बाजत दुंदुभी भेरी।
राग रागिनी गावत हरखत, वरखत सुख की ढेरी॥७॥
परमधाम जग धाम श्याम अभिराम श्री गोकुल आये।
मिटि गये द्वंद नंददास के भये मनोरथ भाये॥८॥
हों याचक श्री वल्लभ तिहारो याचन तुमकि आयो हो ।
महा उदार देत भक्तन को अपअपनों मन भायो हो ॥१॥
हेम ग्राम भूषण सुख संपति सो मोहि मन न सुहायो हो ।
पर्यो रहूं नित्य जूठन पाऊं यह मेरे चित लायो हो ॥२॥
प्रफुल्लित भयो निरंतर द्विजवर ब्रह्मवाद तरु छायो हो ।
गाऊं गुण लावण्य सिंधु के दास चरण रज पायो हो ॥३॥
भाग्य सौभाग्य श्री यमुने जु देई ।
बात लौकिक तजो, पुष्टि श्री यमुने भजो, लाल गिरिधरन वर तब मिलेई ॥१॥
भगवदीय संग कर बात इनकी लहें, सदा सानिध्य रहें केलि मेई ।
नंददास जापर कृपा श्रीवल्लभ करें ताकें श्री यमुने सदाबस जु होई ॥२॥
ताते श्री यमुने यमुने जु गावो ।
शेष सहस्त्र मुख निशदिन गावत, पार नहि पावत ताहि पावो ॥१॥
सकल सुख देनहार तातें करो उच्चार, कहत हो बारम्बार जिन भुलावो ।
नंददास की आस श्री यमुने पूरन करी, तातें घरी घरी चित्त लावि ॥२॥
नेह कारन श्री यमुने प्रथम आई ।
भक्त के चित्त की वृत्ति सब जानके, तहांते अतिहि आतुर जु धाई ॥१॥
जाके मन जैसी इच्छा हती ताहिकी, तैसी ही आय साधजु पुजाई ।
नंददास प्रभु तापर रीझि रहे जोई श्री यमुनाजी को जस जु गाई ॥२॥
भक्त पर करि कृपा श्री यमुने जु ऐसी ।
छांडि निजधाम विश्राम भूतल कियो, प्रकट लीला दिखाई जु तैसी ॥१॥
परम परमारथ करत है सबन कों , देत अद्भुतरूप आप जैसी ।
नंददास यों जानि दृढ करि चरण गहे, एक रसना कहा कहो विसेषी ॥२॥
माई मीठे हरि जू के बोलना ।
पांय पैंजनी रुनझुन बाजे, आंगन आंगन डोलना ॥
काजर तिलक कंठ कचुलामल, पीतांबर को चोलना ।
‘परमानंद दास’ की जीवनी, गोपि झुलावत झोलना ॥
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