You are currently browsing the category archive for the ‘श्री हरिराय जी’ category.
हों वारी इन वल्लभीयन पर।
मेरे तन कौ करौं बिछौना, सीस धरो इनके चरनन पर।
भावभरी देखो इन अँखियन, मंडल मध्य विराजत गिरिधर ।
वे तो मेरे प्राण-जीवन-धन दान दिए रे श्री वल्लभ वर ॥
पुष्टीमार्ग प्रकट करिबें कौ प्रगटे श्री विट्ठल द्विजवपुधर ।
दास रसिक जु बलैयां लैं लैं, बल्लभियन कि चरण-रज अनुसर ॥
नैन भरि देखि अब भानु तनया ।
केलि पिय सों करें भ्रमर तबहि परें, श्रम जल भरत आनंद मनया ॥१॥
चलत टेढी होय लेत पिय को मोहि, इन बिना रहत नहिं एक छिनया ।
रसिक प्रीतम रास करत श्री यमुना पास, मानो निर्धनन की है जु धनया ॥२॥
कहत श्रुतिसार निर्धार करिकें ।
इन बिना कौन ऐसी करे हे सखी, हरत दुख द्वन्द सुखकंद बरखें ॥१॥
ब्रह्मसंबंध जब होत या जीव को, तबहि इनकी भुजा वाम फरकें ।
दौरिकरि सौरकर जाय पियसों कहे, अतिहि आनंद मन में जु हरखें ॥२॥
नाम निर्मोल नगले कोउ ना सके, भक्त राखत हिये हार करिकें ।
रसिक प्रीतम जु की होत जा पर कृपा, सोइ श्री यमुना जी को रूप परखें ॥३॥
श्याम सुखधाम जहाँ नाम इनके ।
निशदिना प्राणपति आय हिय में बसे, जोई गावे सुजश भाग्य तिनके ॥१॥
येही जग में सार कहत बारंबार, सबन के आधार धन निर्धन के ।
लेत श्री यमुने नाम देत अभय पद दान, रसिक प्रीतम प्रिया बसजु इनके ॥२॥
पिय संग रंग भरि करि किलोलें ।
सबन कों सुख देन पिय संग करत सेन,चित्त में परत चेन जब हीं बोलें ॥१॥
अति हि विख्यात सब बात इनके हाथ, नाम लेत कृपा करें अतोलें ।
दरस करि परस करि ध्यान हिय में धरें,सदा ब्रजनाथ इन संग डोलें ॥२॥
अतिहि सुख करन दुख सबके हरन,एही लीनो परन दे झकोले ।
ऐसी यमुने जान तुम करो गुनगान,रसिक प्रियतम पाये नग अमोले ॥३॥
हाल ही की टिप्पणियाँ