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हों वारी इन वल्लभीयन पर।
मेरे तन कौ करौं बिछौना, सीस धरो इनके चरनन पर।

भावभरी देखो इन अँखियन, मंडल मध्य विराजत गिरिधर ।
वे तो मेरे प्राण-जीवन-धन दान दिए रे श्री वल्लभ वर ॥

पुष्टीमार्ग प्रकट करिबें कौ प्रगटे श्री विट्ठल द्विजवपुधर ।
दास रसिक जु बलैयां लैं लैं, बल्लभियन कि चरण-रज अनुसर ॥

नैन भरि देखि अब भानु तनया ।
केलि पिय सों करें भ्रमर तबहि परें, श्रम जल भरत आनंद मनया ॥१॥

चलत टेढी होय लेत पिय को मोहि, इन बिना रहत नहिं एक छिनया ।
रसिक प्रीतम रास करत श्री यमुना पास, मानो निर्धनन की है जु धनया ॥२॥

कहत श्रुतिसार निर्धार करिकें ।
इन बिना कौन ऐसी करे हे सखी, हरत दुख द्वन्द सुखकंद बरखें ॥१॥

ब्रह्मसंबंध जब होत या जीव को, तबहि इनकी भुजा वाम फरकें ।
दौरिकरि सौरकर जाय पियसों कहे, अतिहि आनंद मन में जु हरखें ॥२॥

नाम निर्मोल नगले कोउ ना सके, भक्त राखत हिये हार करिकें ।
रसिक प्रीतम जु की होत जा पर कृपा, सोइ श्री यमुना जी को रूप परखें ॥३॥

श्याम सुखधाम जहाँ नाम इनके ।
निशदिना प्राणपति आय हिय में बसे, जोई गावे सुजश भाग्य तिनके ॥१॥

येही जग में सार कहत बारंबार, सबन के आधार धन निर्धन के ।
लेत श्री यमुने नाम देत अभय पद दान, रसिक प्रीतम प्रिया बसजु इनके ॥२॥

पिय संग रंग भरि करि किलोलें ।
सबन कों सुख देन पिय संग करत सेन,चित्त में परत चेन जब हीं बोलें ॥१॥

अति हि विख्यात सब बात इनके हाथ, नाम लेत कृपा करें अतोलें ।
दरस करि परस करि ध्यान हिय में धरें,सदा ब्रजनाथ इन संग डोलें ॥२॥

अतिहि सुख करन दुख सबके हरन,एही लीनो परन दे झकोले ।
ऐसी यमुने जान तुम करो गुनगान,रसिक प्रियतम पाये नग अमोले ॥३॥

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