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गोपन सों यह कन्हाई।
जो हो कहत रह्यो भयो सोइ सपनांतर की प्रकट जनाई॥१॥
जो मांग्यो चाहो सो मांगो, पावोगे सोई मन भाई।
कहत नंद हम ऐसी मांगे चाहत हैं हरि की कुशलाई॥२॥
कर जोरे व्रजपति जू ठाडे गोवर्धन की करत बडाई।
ऐसो देव हम कबहु न देख्यो सहस्त्र भुजा धर खात मिठाई॥३॥
जय जय शब्द होत चहुंदिश तें अति आनंद उर में न समाई।
सूर श्याम कों नीके राखो कहत महेर हलधर दोउ भाई॥४॥
गोपी प्रेम की ध्वजा ।
निज गोपाल किते अपने वश उरधर श्याम भुजा ॥१॥
शुक मुनि व्यास प्रशंसा कीनी ऊधो संत सराही ।
भुरि भाग्य गोकुल की वनिता अति पुनीत भवमांहि ॥२॥
कहा भयो जो विप्रकुल जनम्यो जो हरिसेवा नाही ।
सोई कुलीन दास परमानंद जो हरि सन्मुख धाई ॥३॥
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