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प्रात समय नवकुंज महल में श्री राधा और नंदकिशोर ॥
दक्षिणकर मुक्ता श्यामा के तजत हंस अरु चिगत चकोर ॥१॥
तापर एक अधिक छबि उपजत ऊपर भ्रमर करत घनघोर ॥
सूरदास प्रभु अति सकुचाने रविशशि प्रकटत एकहि ठोर ॥२॥
श्रीनाथ जी को ध्यान मेरे निशदिनारी माई । मेरे मन के मेहेल प्रीतिकुंज जामे जादोराई ।
शामरे बरन कोमल चरन नख देखे चकचोंधी होत, पायन उपर पेंजनी सो विविध जो बनाई ॥१॥
दाहिने पद पद्म आली ताते पग टेढो धरत ऐसे चरण सुख करण है सदा दुखदाई ॥
वनमाल मुक्तामाल, कंठ बनी कौस्तुभमणि, पीतांबर की चटक तामे दामिनी छबी छाई ॥२॥
बाजूबंद मुद्रिका बनी नगकी अति चमत्कार अरुण अधर मुरली मधुरेसुर वजाई ॥
कमल नयन कुंडल कांति ग्रीवा प्रतिबिंब होत, आनंद भर्यो मुखारविंद रह्यो मुसकाई ॥३॥
मोरमुकुट लटकचटक घूंघरवारे अलकझलक , किये चंदनखोर डगमगी चाल सुंदरताई ।
कहि भगवान हित रामरायप्रभु निरख भयो बिहाल श्रीगुपाल रसना रटलाई ॥४॥
नागरी नंदलाल संग रंग भरी राजें ॥
श्याम अंस बाहु दिये कुंवरि पुलक पुलक हिये मंद मंद हसन प्रियें कोटि काम लाजें॥१॥
तरुतमाल श्यामलाल लपटी अंग अंग वेलि निरख सखी छबि सुकेलि नूपुर कल बाजें ॥
दामोदर हित सुदेश शोभित सुंदर सुवेश नवल कुंज भ्रमर पुंज कोकिल कल गाजें ॥२॥
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