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यह प्रसाद हों पाऊं श्री यमुना जी।
तिहारे निकट रहों निसिबासर राम कृष्ण गुण गाऊँ॥१॥
मज्जन करों विमल जल पावन चिंता कलह बहाऊं।
तिहारी कृपा तें भानु की तनया हरि पद प्रीत बढाऊं॥२॥
बिनती करों यही वर मांगो, अधमन संग बिसराऊं।
परमानंद प्रभु सब सुख दाता मदन गोपाल लडाऊं॥३॥
अधम उद्धारनी मैं जानी, श्री जमुना जी।
गोधन संग स्यामघन सुन्दर तीर त्रिभंगी दानी॥१॥
गंगा चरन परस तें पावन हर सिर चिकुर समानी।
सात समुद्र भेद जम-भगिनी हरि नखसिख लपटानी॥२॥
रास रसिकमनि नृत्य परायन प्रेम पुंज ठकुरानी ।
आलिंगन चुंबन रस बिलसत कृष्ण पुलिन रजधानी ॥३॥
ग्रीष्म ऋतु सुख देति नाथ कों संग राधिका रानी।
गोविन्द प्रभु रवि तनया प्यारी भक्ति मुक्ति की खानी ॥४॥
श्री जमुना जी दीन जानि मोहिं दीजे।
नंदकुमार सदा वर मांगों गोपिन की दासी मोहि कीजे ॥१॥
तुम तो परम उदार ख्रुपा निधे चरन सरन सुखकारी।
तिहारे बस सदा लाडिली वर तट क्रीडत गिरिधारी॥२॥
सब ब्रजजन विहरत संग मिलि अद्भुत रास विलासी ।
तुम्हारे पुलिन निकट कुंजने द्रुम कोमल ससी सुबासी ॥३॥
ज्यों मंडल में चंद बिराजत भरि भरि छिरकत नारी ।
हँसत न्हात अति रस भरि क्रीडत जल क्रीडा सुखकारी ॥४॥
रानी जू के मंदिर में नित उठि पाँय लागि भवन काज सब कीजे ।
परमानन्ददास दासी व्है नन्दनन्दन सुख दीजे ॥५॥
जय जय श्री सूरजा कलिन्द नन्दिनी।
गुल्मलता तरु सुवास कुंद कुसुम मोद मत्त, गुंजत अलि सुभग पुलिन वायु मंदिनी॥१॥
हरि समान धर्मसील कान्ति सजम जलद नील, कटिअ नितंब भेदत नित गति उत्तंगिनी।
सिक्ता जनु मुक्ता फल कंकन युत भुज तरंग कमलन उपहार लेत पिय चरन वंदिनी॥२॥
श्री गोपेन्द्र गोपी संग श्रम जल कन सिक्त अंग अति तरंगिनी रसिक सुर सुफंदिनी।
छीतस्वामी गिरिवरधर नन्द नन्दन आनन्द कन्द यमुने जन दुरित हरन दुःख निकंदिनी ॥३॥
तिहारो दरस मोहे भावे श्री यमुना जी ।
श्री गोकुल के निकट बहत हो, लहरन की छवि आवे ॥१॥
सुख देनी दुख हरणी श्री यमुना जी, जो जन प्रात उठ न्हावे ।
मदन मोहन जू की खरी प्यारी, पटरानी जू कहावें ॥२॥
वृन्दावन में रास रच्यो हे, मोहन मुरली बजावे ।
सूरदास प्रभु तिहारे मिलन को, वेद विमल जस गावें ॥३॥
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