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कन्हैया हालरू रे ।
गुढि गुढि ल्यायो बढई धरनी पर डोलाई बलि हालरू रे ॥१॥
इक लख मांगे बढै दुई नंद जु देहिं बलि हालरू रे ।
रत पटित बर पालनौ रेसम लागी डोर बलि हालरू रे ॥२॥
कबहुँक झूलै पालना कबहुँ नन्द की गोद बलि हालरू रे ।
झूलै सखी झुलावहीं सूरदास, बलि जाइ बलि हालरू रे ॥३॥
हालरौ हलरावै माता ।
बलि बलि जाऊँ घोष सुख दाता ॥१॥
जसुमति अपनो पुन्य बिचारै ।
बार बार सिसु बदन निहारै ॥२॥
अँग फरकाइ अलप मुसकाने ।
या छबि की उपना को जानै ॥३॥
हलरावति गावति कहि प्यारे ।
बाल दसा के कौतुक भारे ॥४॥
महरि निरखि मुख हिय हुलसानी ।
सूरदास प्रभु सारंगपानी ॥५॥
पालनैं गोपाल झुलावैं ।
सुर मुनि देव कोटि तैंतीसौ कौतुक अंबर छावैं ॥१॥
जाकौ अन्त न ब्रह्मा जाने, सिव सनकादि न पावैं ।
सो अब देखो नन्द जसोदा, हरषि हरषि हलरावैं ॥२॥
हुलसत हँसत करत किलकारी मन अभिलाष बढावैं ।
सूर श्याम भक्तन हित कारन नाना भेष बनावै ॥३॥
जसोदा हरि पालने झुलावै ।
हलरावे दुलराइ मल्हावै, जोइ सोइ कछु गावै ॥१॥
मेरे लाल को आउ निंदरिया, काहै न आनि सुवावै ।
तू काहे नहि बेगहिं आवै, तोको कान्ह बुलावै ॥२॥
कबहुँ पलक हरि मूँद लेत है, कबहुँ अधर फरकावै ।
सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि, करि करि सेन बतावै ॥३॥
इहि अन्तर अकुलाइ उठे हरि,जसुमति मधुरै गावै ।
जो सुख सूर अमर मुनि दुरलभ,सो नंद भामिनि पावै ॥४॥
पलना स्याम झुलावत जननी ।
अति अनुराग पुरस्सर गावति, प्रफुलित मगन होति नंद घरनी ॥१॥
उमंगि उमंगि प्रभु भुजा पसारत, हरषि जसोमति अंकम भरनी ।
सूरदास प्रभु मुदित जसोदा, पूरन भई पुरातन करनी ॥२॥
कनक रति मनि पालनौ, गढ्यो काम सुतहार ।
बिबिध खिलौना भाँति के, गजमुक्ता चहुँधार ॥
जननी उबटि न्हवाइ के, क्रम सों लीन्हे गोद ।
पौढाए पट पालने, निरखि जननि मन मोद ॥
अति कोमल दिन सात के, अधर चरन कर लाल ।
सूर श्याम छबि अरुनता, निरखि हरष ब्रज बाल ॥
माई मीठे हरि जू के बोलना ।
पांय पैंजनी रुनझुन बाजे, आंगन आंगन डोलना ॥
काजर तिलक कंठ कचुलामल, पीतांबर को चोलना ।
‘परमानंद दास’ की जीवनी, गोपि झुलावत झोलना ॥
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