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श्री लछमन कुल चंद उदित जग उद्योतकारी।
मात इलम्मा विमलराका उडुगन निजजन समाज पोषत पीयूष वचन हरियस उजियारी॥१॥

करुनामय निष्कलंक मायावाद तिमिर हरन सकल कला पूरन मन द्विजवपुधारी।
बलि बलि बलि माधोदास चरन कमल किये निवास भयो चकोर लोचन छबि निरखत गिरिधारी॥२॥

आनंद आज भयो हो भयो जगती पर जय जय कार।
श्री लछमन गृह प्रगट भये हैं श्री वल्लभ सुकुमार॥१॥

धन्य धन्य माधव मास एकादसी कृष्णपक्ष रविवार।
गुननिधान श्री गिरिधर प्रगटे लीला द्विज तनु धार॥२॥

प्रभु श्रीलछमन गृह प्रगट भये।
हरि लीला रस सिंधु कला निधि बचन किरन सब ताप गये॥१॥

मायावाद तिमिर जीवन को प्रगटत नास भयो उर अंतर ।
फूले भक्त कुमोदिनी चहुँ दिस सोभित भये भक्ति मन सारस॥२॥

मुदित भये कमल मुख तिनके वृथा वाद आये गनत बल।
गिरिधर अन्य भजन तारागन मंद भये भजि गावत चंचल॥३॥

जप तप तीरथ नेम धरम व्रत मेरे श्री वल्लभ प्रभु जी कौ नाम।
सुमिरों मन सदा सुखकारी दुरित कटै सुधरे सब काम॥१॥

हृदै बसैं जसोदा सुत के पद लीला सहित सकल सुख धाम।
रसिकन यह निर्धार कियो है साधन त्यज भज आठौ जाम॥२॥

श्री वल्लभ लाल पालने झूलें मात एलम्मा झुलावे हों।
रतन जटित कंचन पलना पर झूमक मोती सुहावे हो॥१॥

झालर गज मोतिन की राजत दच्छिन चीर उढावे हो।
तोरन घुंघरु घमक रहे हैं झुंझना झमकि मिलावे हो॥२॥

चुचकारत चुटकी दै नचावत चुंबन दै हुलरावे हो।
किलकि किलकि हँसत मुख प्रमुदित बाललीला जाहि भावे हो॥३॥

कबहुँ उरज पय पान करावत फिर पलना पोढावे हो।
पीठ उठाय मैया सन्मुख व्है आपुन रीझि रिझावे हो॥४॥

महाभाग्य हैं तात मात दोऊ आपुन यों बिसरावै हो।
वल्लभदास आस सब पूजी श्री वल्लभ दरस दिखावे हो॥५॥

कांकरवारे तैलंग तिलक द्विज वंदो श्रीमद लछमननंद ।
द्वैपथ राज सिरोमनि सुंदर भूतल प्रगटे वल्लभ चंद॥१॥

अबजु गहे विष्णुस्वामी पथ नवधा भक्ति रतन रस कंद ।
दरसन ही प्रसन्न होत मन प्रगटे पूरन परमानंद॥२॥

कीरत विसद कहां लों बरनों गावत लीला श्रुति सुर छंद।
सगुनदास प्रभु षट्गुन संपन्न कलिजन उद्धरन आनंद कंद॥३॥

सुखद माधव मास कृष्ण एकादशी भट्ट लछमन गेह प्रगट बैठे आइ।
ब्रज जुवती गूढ मन इंद्रियाधीस आनंद गृह जानि विधु निगमगति घट पाइ॥१॥

अज्ञ जन ग्रहन सुत भवन तैसो जानि बिमल मति पाइ विधु जात हेरी आइ।
दनुज मायिक मत नम्र कंधर किये लिये ध्वज जानि ध्वज सुक्र है सुखदाई॥२॥

अवनितल मलिनता दूर करिवे काज गेह सुख दैन जामित्र गति सन जाइ।
धर्म पथ भूप गुरु चरन वल्लभ जानि देव गुरु भौम अनुचर भए री आइ॥३॥

प्रखर मायावाद सत्रु संघात कारन सूररिपु सदन को छाइ।
गिरिधरन कर्म अर्पन विधुतुंद दसम गेह गहि रहत अनुकूल कृतिकों पाइ॥४॥

तत्व गुन बान भुवि माधवासित तरनि प्रथम भगवद दिवस प्रगट लछमन सुवन।
धन्य चम्पारण्य मन त्रैलोकजन अन्य अवतार होय है न ऐसो भुवन॥१॥

लग्न वसु कुंभ गति केतु कवि इंदु सुख मीन बुध उच्च रवि वैर नासे।
मंद वृष कर्क गुरु भौम युत तम सिंघ योग ध्रुवकरन बव यस प्रकासे॥२॥

ऋच्छ धनिष्ठा प्रतिष्ठा अधिष्ठान स्थित विरह वदना-नलाकार हरिको।
येहि निस्चै द्वरकेस इनकी सरन और वल्भाधीस सर को ॥३॥

जब तें वल्लभ भूतल प्रगट भये।
वदन सुधानिधि निरखत प्रभु कौ सब दूर गये॥१॥

श्री लछमन वंस उजागर सागर भक्ति वेद सब फिर जुटये।
मायावाद सब खंड खंडन करि अति आनंद भये॥२॥

गिरिधर लीला विस्तारन कारन दिन दिन केलि रये।
सगुनदास सिर हस्तकमल धरि श्री चरनांबुज गहे॥३॥

प्रगट भये प्रभु श्रीमद वल्लभ ब्रज वल्लभ द्विज देह।
निजजन सब आनंदित गावत बजत बधाई सबहिन के गेह॥१॥

भूतल प्रगट्यो भाव श्रुतिन को उपज्यो नंदनंदन पद नेह।
मिटे ताप निजजन के मन के बरखे प्रेम भक्ति रस मेह॥२॥

निरखत श्री मुखचंद सबन के दूर भये सब निगम संदेह।
मिटि गये सब कपट कुटिल खल मारग भस्म भये सब आसुर जेह॥३॥

करत केलि कुंजन नित गिरिधर सुधि करिवो जो पूरव नेह।
कहत दास जोरी चिरजीयो क्यों गुन बरनें नाहिन छेह॥४॥

वल्लभ भूतल प्रगट भये।
माधव मास कृष्ण एकादशी पूरन विधु उदये॥१॥

पुत्र जन्म सुन श्री लछमन भट बहु विधि दान दिये।
मागध सूत बंदीजन बोलत सब दुःख दूर गये॥२॥

पुष्टि प्रकास करन को आये द्विज स्वरूप धरये।
विष्णुदास के सिर बिराजत प्रभु आनंदमये॥३॥

आज जगती पर जयजय जार।

प्रगट भये श्री वल्लभ पुरुषोत्तम बदन अग्नि अवतार॥१॥

धन्य दिन माधव मास एकादसी कृष्ण पच्छ रविवार।

श्री मुख वाक्य कलेवर सुन्दर धर्यो जगमोहन मार॥२॥

श्री भगवत आत्म-अंग जिनके प्रगट करन विस्तार।

दुंदुभी देव बजावत गावत सुर-वधू मंगल चार॥३॥

पुष्टि प्रकास करेंगे भू पर जनहित जग अवतार।

आनंद उमग्यो लोक तिहूंपुर जन ’गिरिधर’ बलिहार॥२॥

श्री वल्लभ श्री वल्लभ श्री वल्लभ कृपा निधान अति उदार करुनामय दीन द्वार आयो।

कृपा भरि नैन कोर देखिये जु मेरी ओर जनम जनम सोधि सोधि चरन कमल पायो॥१॥

कीरति चहुँ दिसि प्रकास दूर करत विरह ताप संगम गुन गान करत आनंद भरि गाऊँ।

विनती यह यह मान लीजे अपनो हरिदास कीजे चरन कमल बास दीजे बलि बलि बलि जाऊँ॥२॥

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