मूल पुरुष नारायण यज्ञ। श्रुति अवतार भये सर्वज्ञ॥
शाखा तैत्तरीय गोत्र भारद्वाज। तैलंग कुल उदित द्विजराज॥
द्विजराज तें हरि आय प्रगटे सोम यज्ञ कियो जबें।
कुंड तें हरि कहि जु बानी जन्म कुल तुम्हरे अबें॥
चकित तत्छन भये सब जन ऐसी अब लों न भई कबें।
सुनत ही मन हरख कीनो धन्य धन्य कह्यो सबें॥१॥
तिनके पुत्र भये गंगाधर। तिनके गनपति सुत वल्लभवर॥
श्री लक्षमन भट अनुभव टेव। सुद्ध सत्व ज्यों श्री वसुदेव॥
सत्व गुन विद्या पयोनिधि विसद कीरति प्रगटई।
गाम कांकरवार में तही जाति सब हरखित भई॥
परव पर सह कुटुम्ब लेके चले प्राग को साथ लै।
स्नानदान दिवाय द्विज कों चले कासी पांत लै॥२॥
कछुक दिन रहिकें चले सब दच्छन। आनंदित तनु सगुन सुलच्छन॥
चम्पारन्य माहि जब आये। एलम्मगारू गर्भ स्त्रवित जताये॥
स्त्राव जानि चले तहां ते नगर चोडा में बसे।
जगत में आनंद फैल्यो दसो दिसा मनों हँसे॥
चैन है सुनि चले कासी फेर वहि बन आवहिं।
अग्नि चहुँधा मधि बालक देख सन्मुख धावहीं॥३॥
मारग दियो जानि जिय माता। लिये उछंग मोहि दियो है विधाता॥
तात सुनत दौरि कंठ लगाये। तिहिं छिन मंगल होत बधाये॥
मंगल बधायो होत तिहुंपुर देव दुंदुभी बाजहीं।
जोतसी कों लग्न पूछत प्रथम समयो साध ही॥
धन्य संवत पंद्रहा पेंतीस माधव मास है।
कॄष्णा एकादशी श्री वल्लभ प्रगटा वदन विलास है॥४॥
श्री वल्लभ को ले आये कासी। सुंदर रूप नयन सुख रासी॥
सात बरस उपवीत धराये। तब तें विद्या पढन पठाये॥
पढें चारों वेद अरु खट शास्त्र महिना चार में।
तात को अचरज भयो यह कौन रूप विचार में॥
नींद आई कह्यो प्रभु संदेह क्यों तुम करत हो।
प्रथम बानी भई है सो प्रगट जानो अब भयो॥५॥
जाग परि कह्यो पत्नी आगे। ये हैं पूरन ब्रह्म अनुरागे॥
श्री मुख बचन कहे श्री वल्लभ। माया मत खंडन भये सुलभ॥
सुलभ तें दच्छिन पधारे ग्यारह बरस को बपु धरे।
देख मामा हरख के आदर कियो आवो घरें॥
विद्यानगर कृष्णदेव राजा बहुत मतही जहाँ मिले।
जीत के कनकाभिषेक सों पढे आवत यहाँ पहले॥६॥
रामानुज अरु माध्वाचारज। विष्णुस्वामि निमादित्य हरि भज॥
संकर में अनुसरत और मत। युक्ति बल तें आज सबल अति॥
सबल सुन आपहिं पधारे द्वार पें पहुँचे जबे।
भृत्य दौरि प्रताप बरन्यो राय आवो इहां सबे॥
राय आय प्रनाम कीनो सभा में जु पधारिये।
सुनहुं बिनती कृपासागर दुष्ट मतहि विडारिये॥७॥
गजगति चाल चले श्री वल्लभ। इनकी कृपा भये सब सुलभ॥
रवि के उदय किरन ज्यों बाढी। तैसी सभा पांत उठ ठाडी॥
ठाडे सब स्तुति करें जब, कियो मायामत खंडन।
सब्द जै जै होत सब मुख, भक्ति पथ भुव मंडन॥
स्तुति करें द्विज हाथ जोरें राय मस्तक नाव ही।
परम मंगल होत है कनकाभिषेक करावही॥८॥
पाछे जलसों न्हाय बिराजे। बिनती करी राये मन साजे।
द्रव्य सबे अंगीकृत करिये। प्रभु बोले यह नाहिंन ग्रहिये॥
ग्रहिए नाहिन स्नान जलवत बाँट सबकों दीजिये।
बांट दीनो करी बिनती मोहि सरन जू लीजिये॥
कृपा करिके सरन लीनो थार भरी मोहोरे धर्यो।
सप्त लेके कह्यो दैवी द्रव्य अंगीकृत कर्यो॥९॥
तहाँ ते पंढरपुर जु सिधारे। श्री विट्ठलनाथ मिलन को जु पधारे॥
भीमरथी के पार मिले जब। दोऊ तन में आनंद बढ्यो तब॥
बढ्यो आनंद करी विनती आप कों यह श्रम भयो।
कही श्री विट्ठलनाथ जी ने मित्रता पथ प्रगटियो॥
फेरि श्री गोकुल पधारे निरख यमुना हरख हीं।
संग दमालिक हते तिन पै कृपा रस बरखहिं॥१०॥
एक समै चिन्ता चित्त आई। दैवी किहिं बिधि जानी जाई॥
आसुरी सों सब मिलित सदाई। भिन्न होय सो कौन उपाई॥
भिन्न को जब चित्त धरे तब प्रभु पधारे तिहिं समे।
मधुर रूप अनंग मोहित कहत सुध कीने हमें॥
करो अब तें ब्रह्म को सबंध दैवी सृष्टि सों।
पांच दोष न रहे ताके निवेदन करो वृष्टि सों॥११॥
वचन सुनी हरखे श्री वल्लभ। यह आज्ञा ते परम अति सुलभ॥
कंठ पवित्रा ले पहराये। मिश्री भोग धरी मन भाये॥
भयो भायो चित्त कौ तब पुष्टिपंथ को अनुसरे।
सरन जे आवे निरंतर काल भय तें ना डरे॥
प्रगट सब लीला दिखावत नंदनंदन जे करी।
अवनि पर पद पद्म राखी परिक्रमा मिष उर धरी॥१२॥
फेर पंढरपुर जब आये। श्री विट्ठलनाथ कही मन भाये।
करि विवाह बहु रूप दिखावो। मेरो नाम सुवन कों जु धरावो॥
धरो चित्त में बात यह कासी विवाह जु होयगो।
मैं कह्यो द्विज आय बिनती करे चरन समोयगो॥
आय वहाँ ते विवाह कीनो अधिक मंगल तब भयो।
नाम धर्यो श्री महालक्ष्मी देखि जोरी दुख गयो॥१३॥
परिक्रमा तीजी चित आए। निकसी चले श्री वल्लभ राई॥
झारखंड में प्रभु ने जताई। अबके मोहि मिलो मन भाई॥
मिलैंगे हरिदास पें जहाँ तीन दमन कहावहीं।
इंद्र नाग जु देव दमन सो मेरो नाम जतावहीं॥
फेरि के जब ब्रज पधारी पाँच सेवक संग हैं।
सदु है आन्योर में जहाँ द्वार पे ठाडे रहैं॥१४॥
सदु कहे स्वामी कछु खैहैं। मेघन कही सेवक को ले हैं॥
इतने प्रभु गिरि ऊपर बोले। लाइ नरो दूध रहे अनबोले॥
बोली नरो यह पाहुने आये तिनहीं को बैठारिये।
प्रभु कहत मोहि बेर लागत भली चित्त बिचारिये॥
लै गई पय प्याय आई देख श्री वल्लभ कह्यो।
बच्यो होय कछु हमें दीजे बोल पहिलोहि गह्यो॥१५॥
देखि नरो बोली हौं वारी ॥ नाम दीजिये गर्व प्रहारी॥
नाम दीनो पूछी वे कहाँ हैं। कहि पर्वत पर जाओ तहाँ हैं॥
तहाँ देखे प्रानपति तब हुलसि दोऊ तन फूल हीं।
उहि समै सुख कहि न आवे पंगु गति मति भूलहीं॥
हँसि कह्यो सह कुटुम्ब आवो निकट रहि सेवा करो।
मानि वचन प्रमान कीनो सासरे दिस पग धर्यो॥१६॥
कछु दिन रहि संग लै आये। बसे अडेल में निज हरखाये॥
संवत पंद्रहसैं सरसठ आयो। आसौ वदी द्वादसी सुभ गायो॥
गायो श्री गोपी नाथ जी जब जन्म लीनो आय के।
जानि बलको रूप हरखित देत दान बधाय के॥
फेरि के चरणाट आये कछुक दिन रहे जानि के।
धन्य संवत पंद्रहा बहोतरा सुभ मानि के॥१७॥
पोष कृष्ण नौमी सुभ आई। घर घर मंगल होत बधाई॥
श्री विट्ठलनाथ जनम भयो सुनि के। कहत फिरत आनंद गुन गनि के।
आनंद बढ्यो चहुँ दिसा छबि देखि श्री वल्लभ हँसे।
बेउ कछु मुसिकाय चित में दोऊ हँसनि मेरे मन बसे॥
तिलक मृगमद छिप्यो हरखित कहाँ लो गुन गाइये।
कृपा तें उछलित निज रस छिपत नाहीं छिपाइये॥१८॥
श्री गोकुल में वास सुहायो। श्री रुक्मिनी पद्मवती पति पायो॥
श्री गिरिवरधरन छबीलो। श्री नवनीत प्रिया अबरीलो॥
प्रिय श्री मथुरेश श्री विट्ठलेश श्री द्वारकेश जू।
श्री गोवर्धनधर श्री गोकुल चन्द्रमा श्री मधुरेश जू॥
श्री मदनमोहन अष्ट इहि विधि रमन श्री विट्ठलनाथ के।
तात को चित्त जानि सेवा विस्तरी सब साथ के॥१९॥
पंद्रह सें सत्तानुं कार्तिक। विमल द्वादशी मंगल नित ढिंद॥
प्रथम पुत्र प्रगटे श्री गिरिधर। षटगुण धर्मी धर्म धुरंधर॥
धुरंधर ऐश्वर्य श्री गोविन्द पंचदस नन्यानवे।
उर्ज सामल अष्टमी सुभ गुरु सुदिन प्रगटे जबे॥
ऋतु वियत सिंगार आस्विन असित तेरह भ्राजहीं।
श्री बालकृष्ण जी महा पराक्रमी, बसु ख सोले राजहीं॥२०॥
कवि सह सुदि सातें गोकुल पति। यस स्वरूप माला स्थापित रति॥
सोलह सैं ग्यारह कार्तिक सित। अर्क बुध रघुनाथ श्री सहित॥
हेतु निज अभिधान प्रगटे तात आज्ञा मानि के।
तिथि कला बुध मधु छठ बिमल ज्ञान बखानि के॥
श्री यदुनाथ प्रगट रह्यो विरहें श्री घनश्याम स्वरूप के।
सह कृष्ण तेरस रविजरिक्ष सत कला श्री विट्ठल भूप के॥२१॥
भामिनी रानी कमला बखानी। पारवती जानकी महारानी॥
कृष्णावती मिल सातों कहाये। यह अलौकिक रूप महाये॥
महाअलौकिक अग्निकुल सब, अलौकिक अष्टछाप हैं।
अलौकिक सब भक्त जन जे सरन लीने आप हैं॥
यथा मति कछु बरनि आई जानियो यह दास है।
‘श्री द्वारकेश’ निरोध माँगे यही फल की आस है॥२२॥
19 टिप्पणिया
Comments feed for this article
जून 25, 2008 at 1:14 अपराह्न
Mohit Bagaria
jia shree krishna
जून 2, 2010 at 3:08 अपराह्न
Saurabh
jai shree krishna
जुलाई 19, 2010 at 8:52 पूर्वाह्न
Mukund Kaneriya
Jay Shree Krishna
दिसम्बर 17, 2010 at 4:32 पूर्वाह्न
GULSHAN ARORA
MUKUND JI AP KO GULSHAN ARORA JAI JAI SHREE KRISHNA PLS ACCEPT IT
दिसम्बर 9, 2014 at 6:47 अपराह्न
Ranjan
Who were the 5 sevaks accompnied shree mahaprabhuji when he went to vraj refer stanza 14 of mul purush
जुलाई 28, 2010 at 7:59 अपराह्न
gaurav
jai shri krishna
दिसम्बर 17, 2010 at 4:30 पूर्वाह्न
GULSHAN ARORA
KITNA ANUGRAH KIYA HAI SHRI MAHAPRABHHU JI NE HUM JEEVO PAR HUM JAISI BANJAR BHUMI KO PURCHASE KIYA AUR US MEIN DIKSHA YANI BEEJ DAL KAR SATSANG KA PANI DALNE KE LIYE HUMAY ADESH DIYA AUR HUM JEEV MURKH BAN KAR SIRF APNE NEEJE KARYO MEIN BHATAK RAHE HAI SHAYAD SHRI THAKUR JI KI YAHI MARJI HAI
सितम्बर 18, 2011 at 12:04 अपराह्न
hargovind
gulshanji, ek baat aapane sahi kahi ki sabhi pushtimargi vaishnav murkha hai jo krishna ko chod kisi mahaprabhu ko bhaj rahe hai jinake baareme bataya jaa raha hai ki vo tailand brahman the aur unpar bhagwanne kripa ki. Kyaa praman hai is baat kaa? Aur yadi ki bhi to kya unake vanshaj bhi itane poojya ho gaye ki ham bhagwan krishna ko chod unake charan pakhare? Ye niri moorkhata hai. Asali ko bhajo, is nakali mahaprabhu ke vanshajo ko chodo. Aapke aur hamare paiso par ye aish karate hai. Sacchai pahachano.
जून 23, 2013 at 8:00 पूर्वाह्न
गीत
अरे हरगोविंद , गुलशन जी की बात समझ न सके तो कुछ भी अंट शंट हमारे श्री वल्लभ और उनके वंशजों के बारे में न कहें … श्री वल्लभ के स्वरुप का प्रमाण तो अनेक हिन्दू ग्रन्थ में मिलता है …अग्नि पुराण पढ़ लीजिये … श्री गुसाईं जी ने भी कहा है – स्ववंशे स्थापित अशेष स्वमहत्म्य … हरगोविंद तुम्हे मेडिकल चेक अप की आवश्यकता है.
दिसम्बर 17, 2010 at 4:31 पूर्वाह्न
GULSHAN ARORA
HARI JI TUM ABHUT ANUGARH KINOOOOOO
जून 15, 2011 at 12:15 पूर्वाह्न
Mathur Gevaria
jay shree Krishna .
मूल पुरुष padhke bahut aand huva .
aise hi agar “NANDDASJI KRUT BHRAMMAR GEET ” mileto bahut aand aave.
अगस्त 5, 2011 at 8:36 पूर्वाह्न
NAINA P SBHAYA
hame sri krishna ke gujarati vale kirtan chahiye mere email id par send kare……………
सितम्बर 16, 2011 at 5:32 पूर्वाह्न
Himanshu Vakharia
Jai Shri Krishna Vaishnav 🙂
Shri Gusainji ne ati anugrah kio Shri Gopaldasji ke upar aur apno hi Swaroop Kripa kari Bhaktkavi Shri Gopaldasji ke Shri Mukh se Pragat kio ‘Shri Vallabhakhyan” dwara 🙂
जून 12, 2012 at 12:43 अपराह्न
pushtidarshan
Jai Shri Krishna
जनवरी 5, 2013 at 1:53 अपराह्न
Taksh Deep
jay shree krushna
khub sundar….kya aap hamein mulpurush ka arth bhej saktey hai…?
जून 30, 2013 at 5:47 पूर्वाह्न
anil shah
jay shree krushna
अप्रैल 7, 2014 at 11:42 पूर्वाह्न
Ankur
Admin,plz aap Shri Mahaprabhuji ke viruddh comment ko jald se jald delete kar de!
फ़रवरी 8, 2019 at 4:28 पूर्वाह्न
Neelu
jai shree krishna, where can i find all the 9 Vallabakhyan in hindi,
thank you
नवम्बर 19, 2019 at 4:28 अपराह्न
Vaibhav Sahadev Redkar
Mala tras khup kashacha hoto