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रसिया को नार बनावो री रसिया को।
कटि लहंगा गल माल कंचुकी, वाको चुनरी शीश उढाओ री।रसिया को॥१॥
बाँह बडा बाजूबंद सोहे, वाको नकबेसर पहराओ री ।रसिया को ॥२॥
लाल गुलाल दृगन बिच काजर, वाको बेंदी भाल लगावो री ।रसिया को ॥३॥
आरसी छल्ला और खंगवारी, वाको अनपट बिछुआ पहराओ री।रसिया को ॥४॥
नारायण करतारी बजाय के, वाको जसुमति निकट नचाओ री।रसिया को ॥५॥
मत मारे दृगन की चोट रसिया होरी में, मेरे लग जायेगी।
मैं तो नारी बडे बडे कुल की, तुम में भरी बडी खोट। रसिया होरी में॥१॥
अबकी बार बचाय गई हूं, कर घूंघट की ओट रसिया होरी में ॥२॥
रसिक गोविन्द वहीं जाय खेलो, जहां तिहारी जोट रसिया होरी में ॥३॥
चन्द्रसखी भज बाल कृष्ण छबि हरि चरनन की ओट रसिया होरी में ॥४॥
चिरजीयो होरी को रसिया चिरजीयो।
ज्यों लो सूरज चन्द्र उगे है, तो लों ब्रज में तुम बसिया चिरजीयो ॥१॥
नित नित आओ होरी खेलन को, नित नित गारी नित हँसिया चिरजीयो॥२॥
सूरदास प्रभु तिहारे मिलन को, पीत पिछोरी कटि कसिया चिरजीयो ॥३॥
कान्हा पिचकारी मत मार मेरे घर सास लडेगी रे।
सास लडेगी रे मेरे घर ननद लडेगी रे।
सास डुकरिया मेरी बडी खोटी, गारी दे ने देगी मोहे रोटी,
दोरानी जेठानी मेरी जनम की बेरन, सुबहा करेगी रे। कान्हा पिचकारी मत मार… ॥१॥
जा जा झूठ पिया सों बोले, एक की चार चार की सोलह,
ननद बडी बदमास, पिया के कान भरेगी रे। कान्हा पिचकारी मत मार… ॥२॥
कछु न बिगरे श्याम तिहारो, मोको होयगो देस निकारो,
ब्रज की नारी दे दे कर मेरी हँसी करेगी रे। कान्हा पिचकारी मत मार… ॥३॥
हा हा खाऊं पडू तेरे पैयां, डारो श्याम मती गलबैया,
घासीराम मोतिन की माला टूट पडेगी रे । कान्हा पिचकारी मत मार… ॥४॥
श्यामा श्याम सलोनी सूरत को सिंगार बसंती है।
सिंगार बसंती है …हो सिंगार बसंती है।
मोर मुकुट की लटक बसंती, चन्द्र कला की चटक बसंती,
मुख मुरली की मटक बंसती, सिर पे पेंच श्रवण कुंडल छबि लाल बसंती है।
श्यामा श्याम सलोनी सूरत…॥१॥
माथे चन्दन लग्यो बसंती, कटि पीतांबर कस्यो बसंती,
मेरे मन मोहन बस्यो बसंती, गुंजा माल गले सोहे फूलन हार बसंती है।
श्यामा श्याम सलोनी सूरत..॥२॥
कनक कडुला हस्त बसंती, चले चाल अलमस्त बसंती,
पहर रहे सब वस्त्र बसंती, रुनक झुनक पग नूपुर की झनकार बसंती है।
श्यामा श्याम सलोनी सूरत…॥३॥
संग ग्वालन को टोल बसंती, बजे चंग ढफ ढोल बसंती,
बोल रहे है बोल बसंती, सब सखियन में राधे की सरकार बसंती है ।
श्यामा श्याम सलोनी सूरत…॥४॥
परम प्रेम परसाद बसंती, लगे चसीलो स्वाद बसंती,
ह्वे रही सब मरजाद बसंती, घासीराम नाम की झलमल झार बसंती है।
श्यामा श्याम सलोनी सूरत..॥५॥
आज बिरज में होरी रे रसिया। होरी रे होरी रे बरजोरी रे रसिया।
घर घर से ब्रज बनिता आई, कोई श्यामल कोई गोरी रे रसिया। आज बिरज में…॥१॥
इत तें आये कुंवर कन्हाई, उत तें आईं राधा गोरी रे रसिया। आज बिरज में…॥२॥
कोई लावे चोवा कोई लावे चंदन, कोई मले मुख रोरी रे रसिया । आज बिरज में ॥३॥
उडत गुलाल लाल भये बदरा, मारत भर भर झोरी रे रसिया । आज बिरज में ॥४॥
चन्द्रसखी भज बाल कृष्ण प्रभु, चिर जीवो यह जोडी रे रसिया । आज बिरज में ॥५॥
फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद किशोर।
घेर लई सब गली रंगीली, छाय रही छबि छटा छबीली,
जिन ढोल मृदंग बजाये हैं बंसी की घनघोर। फाग खेलन…॥१॥
जुर मिल के सब सखियाँ आई, उमड घटा अंबर में छाई,
जिन अबीर गुलाल उडाये हैं, मारत भर भर झोर। फाग खेलन… ॥२॥
ले रहे चोट ग्वाल ढालन पे, केसर कीच मले गालन पे,
जिन हरियल बांस मंगाये हैं चलन लगे चहुँ ओर। फाग खेलन… ॥३॥
भई अबीर घोर अंधियारी, दीखत नही कोऊ नर और नारी,
जिन राधे सेन चलाये हैं, पकडे माखन चोर। फाग खेलन… ॥४॥
जो लाला घर जानो चाहो, तो होरी को फगुवा लाओ,
जिन श्याम सखा बुलाए हैं, बांटत भर भर झोर । फाग खेलन… ॥५॥
राधे जू के हा हा खाओ, सब सखियन के घर पहुँचाओ,
जिन घासीराम पद गाए हैं, लगी श्याम संग डोर। फाग खेलन… ॥६॥
नैनन में पिचकारी दई, मोहे गारी दई, होरी खेली न जाय।
क्यों रे लंगर लंगराई मोसे कीनी, केसर कीच कपोलन दीनी
लिये गुलाल ठाडो ठाडो मुसकाय, होरी खेली न जाय ॥१॥
नेक न कान करत काहू की, नजर बचावे भैया बलदाऊ की
पनघट से घर लों बतराय, होरी खेली ने जाय ॥२॥
ओचक कुचन कुमकुमा मारे, रंग सुरंग सीस पे डारे
यह ऊधम सुन सास रिसाय. होरी खेली न जाय॥३॥
होरी के दिनन मोसे दूनो दूनो अटके, सालीगराम कौन जाय हटके
अंग चुपट हँसी हा हा खाय, होरी खेली न जाय ॥४॥
फागुन में रसिया घर बारी फागुन में ।
हो हो बोले गलियन डोले गारी दे दे मत वारी ॥
लाजधरी छपरन के ऊपर आप भये हैं अधिकारी ॥
पुरुषोत्तम प्रभु की छबि निरखत ग्वाल करे सब किलकारी ॥
मृगनैनी नार नवल रसिया ।
जाके बडे बडे नैन में कजरा सोहे जाकी टेढी सी नजर मेरे मन बसिया ॥
जाके नवरंगी तो लहंगा सोहिये जाकि पतरी कमर मेरे मन बसिया ॥
पुरुषोत्तम प्रभु की छभि निरखत सबे मिली ब्रज में बसिया ॥
ब्रजमंडल देस दिखाओ रसिया ब्रजमंडल ।
तिहारे बिरज में मोर बहुत हैं, कूंकत मोर फटे छतिया ॥
तिहारे बिरज मैं गैया बहुत है पी पी दूध भये पठिया ॥
तिहारे बिरज में ज्वार काचरो हरि हरि मूंग उडद किचिया ॥
तिहारे बिरज में बंदर बहुत हैं सूनो भवन देख धसिया ॥
पुरुषोत्तम प्रभु की छवि निरखत तेरे चरनन मेरो मन बसिया ॥
वृंदावन खेल रच्यो भारी वृंदावन ।
वृंदावन की गोरी नारी टूटी हार फटे सारी ॥
ब्रज की होरी ब्रज की गारी ब्रज की श्री राधा प्यारी ॥
पुरुषोत्तम प्रभु होरी खेले तन मन धन सरबस वारी ॥
होरी खेलूँगी श्याम संग जाय,
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री ॥१॥
फागुन आयो…फागुन आयो…फागुन आयो री
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री
वो भिजवे मेरी सुरंग चुनरिया,
मैं भिजवूं वाकी पाग ।
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री ॥२॥
चोवा चंदन और अरगजा,
रंग की पडत फुहार ।
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री ॥३॥
लाज निगोडी रहे चाहे जावे,
मेरो हियडो भर्यो अनुराग ।
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री ॥४॥
आनंद घन जेसो सुघर स्याम सों,
मेरो रहियो भाग सुहाग ।
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री ॥५॥
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