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श्री यमुने पति दास के चिन्ह न्यारे ।
भगवदी को भगवत संग मिलि रहत हैं, जाके हिय बसत प्राण प्यारे ॥१॥
गूढ यमुने बात सोई अब जानही, जाके मनमोहन नैनतारे ।
सूर सुख सार निरधार वे पावहीं, जापर होय श्री वल्लभ कृपा रे ॥२॥
भक्त को सुगम श्री यमुने अगम ओरें ।
प्रात ही न्हात अघजात ताकें सकल जमहुं रहत ताहि हाथ जोरे ॥१॥
अनुभवि बिना अनुभव कहा जानही जाको पिया नही चित्त चोरें ।
प्रेम के सिंधु को मरम जान्यो नही सूर कहे कहा भयो देह बोरे ॥२॥
नाम महिमा ऐसी जु जानो ।
मर्यादादिक कहें लौकिक सुख लहे पुष्टि कों पुष्टिपथ निश्चे मानो ॥१॥
स्वाति जलबुन्द जब परत हें जाहि में , ताहि में होत तेसो जु बानो ।
श्री यमुने कृपा सिंधु जानि स्वाति जल बहु मानि, सूर गुण पुर कहां लो बखानों ॥२॥
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