You are currently browsing the category archive for the ‘राग कान्हरो’ category.
ऐसो पूत देवकी जायो।
चारों भुजा चार आयुध धरि, कंस निकंदन आयो ॥१॥
भरि भादों अधरात अष्टमी, देवकी कंत जगायो।
देख्यो मुख वसुदेव कुंवर को, फूल्यो अंग न समायो॥२॥
अब ले जाहु बेगि याहि गोकुलबहोत भाँति समझायो।
हृदय लगाय चूमि मुख हरि को पलना में पोढायो॥३॥
तब वसुदेव लियो कर पलना अपने सीस चढायो।
तारे खुले पहरुवा सोये जाग्यो कोऊ न जगायो॥४॥
आगे सिंह सेस ता पाछे नीर नासिका आयों।
हूँक देत बलि मारग दीनो, नन्द भवन में आयो॥५॥
नन्द यसोदा सुनो बिनती सुत जिनि करो परायो।
जसुमति कह्यो जाउ घर अपने कन्या ले घर आयो॥६॥
प्रात भयो भगिनी के मंदिर प्रोहित कंस पठायो।
कन्या भई कूखि देवकी के सखियन सब्द सुनायो॥७॥
कन्या नाम सुनो जब राजा, पापी मन पछतायो।
करो उपाय कंस मन कोप्यो राज बहोत सिरायो॥८॥
कन्या मगाय लई राजा ने धोबी पटकन आयो।
भुजा उखारि ले गई उर ते राजा मन बिलखायो॥९॥
वेदहु कह्यो स्मृति हू भाख्यो सो डर मन में आयो।
’सूर’ के प्रभु गोकुल प्रगटे भयो भक्तन मन भायो॥१०॥
प्रभु श्रीलछमन गृह प्रगट भये।
हरि लीला रस सिंधु कला निधि बचन किरन सब ताप गये॥१॥
मायावाद तिमिर जीवन को प्रगटत नास भयो उर अंतर ।
फूले भक्त कुमोदिनी चहुँ दिस सोभित भये भक्ति मन सारस॥२॥
मुदित भये कमल मुख तिनके वृथा वाद आये गनत बल।
गिरिधर अन्य भजन तारागन मंद भये भजि गावत चंचल॥३॥
कापर ढोटा नयन नचावत कोहे तिहारे बाबा की चेरी।
गोरस बेचन जात मधुपुरी आये अचानक वनमें घेरी॥१॥
सेननदे सब सखा बुलाये बात ही बात समस्या फेरी।
जाय पुकारों नंदजुके आगे जिन कोउ छुवो मटुकिया मेरी ॥२॥
गोकुल वसि तुम ढीट भये हो बहुते कान करत हों तेरी।
परमानंददास को ठाकुर बल बल जाऊं श्यामघन केरी॥३॥
यह धन धर्म ही तें पायो।
नीके राखि जसोदा मैया नारायण ब्रज आयो॥१॥
जा धन को मुनि जप तप खोजत वेदहुं पार न पायो।
सों धन धर्यो क्षीर सागर में ब्रह्मा जाय जगायो॥२॥
जा धन तें गोकुल सुख लहियत, सगरे काज संवारे।
सो धन वार वार उर अंतर, परमानंद विचारे॥३॥
ओर कोऊ समझे सो समझे हमकु इतनी समझ भली ।
ठाकुर नंदकिशोर हमारे ठकुरानी वृषभान लली ॥१॥
श्रीदामा आदि सखा श्याम के श्यामा संग ललितादि अली ।
व्रजपुर वास शैल वन फिहरत कुंजन कुंजन रंगरली ॥२॥
इनके लाड चाहु सुख सेवा भाव वेल रस फलन फली ।
कहि भगवान हित रामराय प्रभु सबन तें इनकी कृपा भली ॥३॥
गावत गोपी मधु मृदु बानी ।
जाके भवन बसत त्रिभुवनपति राजा नंद यसोदा रानी ॥१॥
गावत वेद भारती गावत गावत नारदादि मुनि ज्ञानी ।
गावत गुन गंधर्व काल सिव गोकुल नाथ महात्तम जानी ॥२॥
गावत चतुरानन जगनायक गावत शेष सहस्त्र मुखरासी ।
मन क्रम बचन प्रीति पद अंबुज अब गावत ‘परमानंद’ दासी ॥३॥
हाल ही की टिप्पणियाँ