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गोपन सों यह कन्हाई।
जो हो कहत रह्यो भयो सोइ सपनांतर की प्रकट जनाई॥१॥

जो मांग्यो चाहो सो मांगो, पावोगे सोई मन भाई।
कहत नंद हम ऐसी मांगे चाहत हैं हरि की कुशलाई॥२॥

कर जोरे व्रजपति जू ठाडे गोवर्धन की करत बडाई।
ऐसो देव हम कबहु न देख्यो सहस्त्र भुजा धर खात मिठाई॥३॥

जय जय शब्द होत चहुंदिश तें अति आनंद उर में न समाई।
सूर श्याम कों नीके राखो कहत महेर हलधर दोउ भाई॥४॥

भली करी पूजा तुम मेरी।
बहुत भांत कर व्यंजन अरप्यो, सो सब मान लई मैं तेरी॥१॥

सहस्त्र भुजाधर भोजन कीनो, तुम देखत विद्यमान।
मोहि जानत यह कुंवर कन्हैया, नाहिन कोऊ आन॥२॥

पूजा सबकी मान लई में जाउ घरन व्रज लोग।
सूर श्याम अपने कर लीने बांटत जूठो भोग॥३॥

देखोरि हरि भोजन खात।
सहस्त्र भुजा धर इत जेमत हे दूत गोपन से करत हे बात॥१॥

ललिता कहत देख हो राधा जो तेरे मन बात समात।
धन्य सबे गोकुल के वासी संग रहत गोकुल के तात॥२॥

जेंमत देख मंद सुख दीनो अति आनंद गोकुल के नर नारी।
सूरदास स्वामी सुखसागर गुण आगर नागर दे तारी॥३॥

यह लीला सब करत कन्हाई।

उत जेमत गोवर्धन के संग, इत राधा सों प्रीत लगाई॥१॥

इत गोपिन सों कहत जिमावो उत आपुन जेमत मनलाई।

आगे धरे छहों रस व्यंजन, चहूं दिश तें अति अरग बढाई॥२॥

अंबर चढे देवगण देखत जय ध्वनि करत सुमन बरखाई।

सूर श्याम सबके सुखकारी भक्त हेत अवतार सदाही॥३॥

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