You are currently browsing the category archive for the ‘मंगला आरती’ category.
मंगल आरती कीजे भोर ॥
मंगल जन्म कर्म गुण मंगल मंगल यशोदा माखन चोर ॥१॥
मंगल वेणु मुकुट गुण मंगल मंगल रूप रमे मनमोर ॥
जन भगवान जगत में मंगल मंगल राधायुगलकिशोर ॥२॥
रत्न जटित कनक थाल मध्य सोहे दीप माल अगर आदि चंदन सों अति सुगंध मिलाई ॥
घनन घनन घंटा घोर झनन झनन झालर झकोर ततथेई ततथेई बोले सब ब्रज की नारी सुहाई ॥१॥
तनन तनन तान मान राग रंग स्वर बंधान गोपी सब गावत हैं मंगल बधाई॥
चतुर्भुज गिरिधरन लाल आरती बनी रसाल तनमनधन वारत हैं जसोमति नंदराई ॥२॥
मंगल रूप यशोदानंद ॥
मंगल मुकुट कानन में कुंडल मंगल तिलक बिराजत चंद ॥१॥
मंगल भूषण सब अंग सोहत मंगल मूरति आनंद कंद ॥
मंगल लकुट कांख में चांपे मंगल मुरली बजावत मंद ॥२॥
मंगल चाल मनोअहर मंगल दरशन होत मिटत दुःख द्वंद ॥
मंगल ब्रजपति नाम सबन को मंगल यश गावत श्रुति छंद ॥३॥
मंगल माधो नाम उचार।
मंगल वदन कमल कर मंगल मंगल जन की सदा संभार ॥१॥
देखत मंगल पूजत मंगल गावत मंगल चरित उदार ।
मंगल श्रवण कथा रस मंगल मंगल तनु वसुदेव कुमार ॥२॥
गोकुल मंगल मधुवन मंगल मंगल रुचि वृंदावन चंद ।
मंगल करत गोवर्धनधारी मंगल वेष यशोदा नंद॥३॥
मंगल धेनु रेणु भू मंगल मंगल मधुर बजावत बेन।
मंगल गोप वधू परिरंभण मंगल कालिंदी पय फेन ॥४॥
मंगल चरण कमल मुनि वंदित मंगल की रति जगत निवास ।
अनुदिन मंगल ध्यान धरत मुनि मंगल मति परमानंद दास ॥५॥
मंगल मंगलम् ब्रज भुवि मंगलं।
मंगल मिह श्री नंद यशोदा नाम सुकीर्तन मेंतद्रुचिरोत्संगसुंलालित पालित रूपं॥१॥
श्री श्री कृष्ण इति श्रुतिसारं नाम स्वार्त जनाशय तापापहमिति मंगलरावं।
ब्रजसुंदरीवयस्य सुरभीवृंद मृगीगण निरूपम् भावाः मंगल सिंधुचया य॥२॥
मंगलमीषत्स्मितयुमीक्षण भाषणमुन्नत नासापुट्गत मुक्ताफल चलनं ।
कोमल चलदंगुलिदल संगत वेणुनिनाद विमोहित वृंदावन भुवि जाताः॥३॥
मंगल मखिलं गोपीशितुरिति मंथरगति विभ्रम मोहित रासस्थितगानं ।
त्वं जय सततं श्रीगोवर्धनधर पालय निजदासान्॥४॥
राग विभास
मंगल करन हरन मन आरति वारति मंगल आरति बाला।
रजनी रस जागे अनुरागे प्रात अलसात सिथिल बसन अरु मरगजी माला॥१॥
बैठे कुंज महल सिंहासन श्री वृषभान कुंवरी नंदलाला।
’ब्रजजन’ मुदित ओट व्है निरखत निमिष न लागत लता द्रुम जाला॥२॥
मंगल आरती गोपाल की ।
नित प्रति मंगल होत निरख मुख, चितवन नयन विशाल की ॥
मंगल रूप श्याम सुंदर को, मंगल छवि भृकुटि सुभाल की ।
चतुर्भुज प्रभु सदा मंगल निधि बानिक गिरिधर लाल की ॥
हाल ही की टिप्पणियाँ