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हों बलि जाऊं कलेऊ कीजे।
खीर खांड घृत अति मीठो है अब को कोर बछ लीजे ॥१॥
बेनी बढे सुनो मनमोहन मेरो कह्यो जो पतीजे।
ओट्यो दूध सद्य धौरी की सात घूंट भरि पीजे ॥२॥
वारने जाऊं कमल मुख ऊपर अचरा प्रेम जल भीजे।
बहुर्यो जाइ खेलो जमुना तट गोविन्द संग करि लीजे ॥३॥
दोउ भैया मांगत मैया पें देरी मैया दधि माखन रोटी ।
सुनरी भामते बोल सुतन के झुठेइ धाम के काम अंगोटी ॥१॥
बलजु गह्यो नासा को मोती कान्ह कुंवर गहि दृढ कर चोटी ।
मानो हंस मोर मखलीने उपमा कहा बरनु मति छोटी ॥२॥
यह छबि देख नंद आनंदित प्रेम मगन भये लोटापोटी ।
सूरदास यशुमति सुख विलसत भाग्य बडे करमन की मोटी ॥३॥
छगन मगन प्यारे लाल कीजिये कलेवा ।
छींके ते सघरी दधीऊखल चढ काढ धरी, पहरि लेहु झगुलि फेंट बांध लेहु मेवा ॥१॥
यमुना तट खेलन जाओ, खेलत में भूख न लागे कोन परी प्यारे लाल निश दिन की टेवा।
सूरदास मदन मोहन घरहि क्यों न खेलो लाल देउंगी चकडोर बंगी हंस मोर परेवा ॥२॥
मैया मोहि माख्नन मिसरी भावे ।
मीठो दधि मिठाई मधुघृत, अपने कर सों क्यों न खवावे ॥१॥
कनक दोहनी दे कर मेरे, गो दोहन क्यों न सिखावे ।
ओट्यो दूध धेनु धोरी को, भर के कटोरा क्यों न पिवावे ॥२॥
अजहु ब्याह करत नही मेरो, तोहे नींद क्यों आवे ।
‘चतुर्भुज’ प्रभु गिरिधर की बतियाँ, सुन ले उछंग पय पान करावें ॥३॥
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