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श्री वल्लभ प्रभु करुणा सागर, जगत उजागर गाइये।
श्री वल्लभ के चरण कमल की, बलि बलि बलि बलि जाइये॥१॥
वल्लभ सृष्टि समाज संग मिल, जीवन को फल पाइये ।
श्री वल्लभ गुण गाइये, जा हि ते रसिक कहाइये॥२॥
प्रीतम प्रीत ही सों पाइये।
यद्यपि रूप गुण शील सुघरता इन बातन न रिझैये॥१॥
सतकुल जन्म कर्म गुण लक्षण वेद पुराण पढैये।
गोविन्द प्रभु बिन स्नेह सो वालो रसना कहा न चैये॥२॥
श्री वल्लभ प्रभु करुणा सागर जगत उजागर गाइये ।
निरख निरख मंगल मुख की छबि बलि बलि बलि बलि जाइये ॥१॥
जिनकी कृपा अनुग्रह तें श्री गिरिधर लाड लडाइये।
अनायास सब सुख को लहिये जीवन को फल पाइये ॥२॥
चरण परस तन रूप परस सब ही दुख दूर बहाइये।
श्री वल्लभ गुन गाइये याते रसिक कहाइये॥३॥
भरोसो श्री वल्लभ ही को भारी।
काहे को मन भटकत डोलत, जो चाहे फलकारी ॥१॥
इनको छांड औरन को जे सेवे, सो कहिये असुरारी।
पुरुषोत्तम प्रभु नाम मंत्र दे चरन कमल शिर धारी ॥२॥
आसरो एक दृढ श्री वल्लभाधीश को।
मानसी रीत की मुख्य सेवा व्यसन, लोक वैदिक त्याग शरन गोपीश को॥१॥
दीनता भाव उदबोध गुनगान सो घोष त्रिय भावना उभय जाने।
श्री कृष्ण नाम स्फुरे पल ना आज्ञा टरे कृति वचन विश्वास दृढ चित्त आने॥२॥
भगवदी जान सतसंग को अनुसरे, नादेखे दोष अरु सत्य भाखे।
पुष्टि पथ मर्म दश धर्म यह विधि कहे, सदा चित्त में द्वारकेश राखे॥३॥
भरोसो वल्लभ ही को राखो।
सगरे काज सरेंगे छिन में, इन ही के गुन भाखो ॥१॥
निस दिन संग करो भक्तन को, असमर्पित नही चाखो।
वल्लभ श्री वल्लभ पद रज बिन और तत्व सब नाखो ॥२॥
चरन कमल बंदौ हरिराई ।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघे,अंधे को सब कछु दरसाई ॥१॥
बहरो सुने मूक पुनि बोले,रंक चले सिर छत्र धराई ।
‘सूरदास’ स्वामी करुणामय, बारबार बंदौ तिहिं पाई ॥२॥
दृढ इन चरण कैरो भरोसो, दृढ इन चरणन कैरो
श्री वल्लभ नख चंद्र छ्टा बिन, सब जग माही अंधेरो । भरोसो…
साधन और नही या कलि में, जासों होत निवेरो । भरोसो….
सूर कहा कहे, विविध आंधरो, बिना मोल को चेरो । भरोसो……
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