You are currently browsing the category archive for the ‘पवित्रा के पद’ category.
पवित्रा पहरत हे अनगिनती।
श्री वल्लभ के सन्मुख बैठे बेटा नाती पंती॥१॥
बीरा दे मुसिक्यात जात प्रभु बात बनावत बनती।
वृंदावन सुख पाय व्रजवधु चिरजीयो जियो भनती॥२॥
पवित्रा श्री विट्ठलेश पहरावे।
व्रज नरेश गिरिधरन चंद्र को निरख निरख सचु पावे॥१॥
आसपास युवतिजन ठाडी हरखित मंगल गावे।
गोविंद प्रभु पर सकल देवता कुसुमांजलि बरखावे ॥२॥
पवित्रा पहरे को दिन आयो।
केसर कुमकुम रसरंग वागो कुंदन हार बनायो॥१॥
जय जयकार होत वसुधा पर सुर मुनि मंगल गायो।
पतित पवित्र किये सुख सागर सूरदास यश गायो॥२॥
पवित्रा पेहेरी हिंडोरे झूले।
श्यामा श्याम बराबर बैठे निरखत ही समतुले ॥१॥
ललितादिक झुलावत ठाडी खंभन लग अनुकूलें ।
ब्रजजन तहां मिल गावत नृत्यत प्रेम मगन सुध भूले ॥२॥
मंद मंद घन बरखत तिंहि छिन बाम सबे सचु पावत।
कालिंदी तट यह विधि लालन पशु पंछी सुख पावत ॥३॥
वृंदावन शोभा कहा वरनुं वेदहु पार न पावत ।
श्री वल्लभ पद कमल कृपा तें रसिक चरन रज पावत ॥४॥
पहरे पवित्रा बैठे हिंडोरे दोऊ निरखत नेन सिराने।
नव कुंज महल में राजत कोटिक काम लजाने ॥१॥
हास विलास हरत सबकेअन अंग अंग सुख साने ।
परमानंद स्वामी मन मोहन उपजत तान बिताने ॥२॥
हाल ही की टिप्पणियाँ