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कौन पे जात श्री यमुने जु बरनी ।
सबही को मन मोहत मोहत मोहन , सो पिया को मन है जु हरनी ॥१॥
इन बिना एक छिन रहत नही जीवन धन, ब्रज चन्द मन आनन्द करनी ।
श्री विट्ठल गिरिधरन संग आये, भक्त के हेत अवतार धरनी ॥२॥
श्री यमुना जी को नाम ले सोई सुभागी ।
इनके स्वरूप को सदा चिन्तन करतम कल न परत जाय नेह लागी ॥१॥
पुष्टि मारग धरम अति दुर्लभ करम छोड सगरे परम प्रेम पागी।
श्री विट्ठल गिरिधरन ऐसी निधि, भक्त को देत है बिना माँगी ॥२॥
भक्त प्रतिपाल जंजाल टारे ।
अपने रस रंग मे संग राखत सदा,सर्वदा जोइ श्री यमुने नाम उच्चारे ॥१॥
इनकी कृपा अब कहाँ लग बरनिये, जैसे राखत जननी पुत्र बारे ।
श्री विट्ठल गिरिधरन संग विहरत, भक्त को एक छन ना बिसारे ॥२॥
रास रससागर श्री यमुने जु जानी ।
बहत धारा तन प्रतिछन नूतन, राखत अपने उर मां जु ठानी ॥१॥
भक्त को सहि भार हेतु जो प्रान आधार, अति हि बोलत मधुर मधुर बानी ।
श्री विट्ठल गिरिधरन बस किये, कौन पें जात महिमा बखानी ॥२॥
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