जय जय लाल गोवर्धनधारी इंद्रमान भंग कीनो।
वाम भुजा राख्यो गिरिनायक भक्तन कों सुख दीनों॥१॥

सात द्योस मघवा पच हार्यो गोसुर श्रृंगार न भीनो।
कृष्णदास गिरिधर पिय आगे पाय पर्यो बलहीनो ॥२॥