जय जय लाल गोवर्धनधारी इंद्रमान भंग कीनो।
वाम भुजा राख्यो गिरिनायक भक्तन कों सुख दीनों॥१॥
सात द्योस मघवा पच हार्यो गोसुर श्रृंगार न भीनो।
कृष्णदास गिरिधर पिय आगे पाय पर्यो बलहीनो ॥२॥
हे कृष्ण, मैं आपका दास हूँ
नवम्बर 24, 2007 in इन्द्रमान भंग के पद, कृष्णदासनि जी, राग मालव
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