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रक्षा बंधन को दिन आयो।
गर्गादि सब देव बुलाये लालहिं तिलक बनायो॥१॥
सब गुरुजन मिल देत असीस चिरंजीयो ब्रजरायो।
बाढो प्रताप नित या ढोटा को परमानंद जस गायो॥२॥
राखी बांधत बहिन सुभद्रा बल अरु श्री गोपाल के।
कंचन रत्न थार भरि मोती तिलक दियो नंदलाल के॥१॥
आरति करत रोहिणी जननी अंतर बढे अनुराग के।
आसकरण प्रभु मोहन नागर, प्रेम पुंज ब्रज बाल के॥२॥
राखी बांधत जसोदा मैया ।
विविध सिंगार किये पटभूषण, पुनि पुनि लेत बलैया ॥१॥
हाथन लीये थार मुदित मन, कुमकुम अक्षत मांझ धरैया।
तिलक करत आरती उतारत अति हरख हरख मन भैया ॥२॥
बदन चूमि चुचकारत अतिहि भरि भरि धरे पकवान मिठैया ।
नाना भांत भोग आगे धर, कहत लेहु दोउ मैया॥३॥
नरनारी सब आय मिली तहां निरखत नंद ललैया ।
सूरदास गिरिधर चिर जीयो गोकुल बजत बधैया ॥४॥
राखी बांधत जसोदा मैया ।
बहु सिंगार सजे आभूषण गिरिधर भैया॥१॥
रतन खचित राखी बांधि कर, पुन पुन लेत बलैया।
सकल भोग आगे धर राखे, जनक जु लेहु कन्हैया ॥२॥
यह छबि देख मग्न नंद रानी, निरख निरख सचु पैया।
जियो जसोदा पूत तिहारो परमानंद बल जैया ॥३॥
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